Wednesday, May 24, 2017

कुछ खाते-पीते "विद्रोही" बुद्धिजीवी गण.......



कुछ खाते-पीते "विद्रोही" बुद्धिजीवी गण रूढ़ियों और पुरातनपंथी कूपमंडूकता के विरुद्ध विद्रोह का परचम लहराने के लिए स्वयं अपने निजी जीवन में अराजक,उछृंखल और किसी भी प्रकार के आदर्शों एवं नैतिक मानकों से रिक्त आचरण करने लगते हैं | अपने विचलनशील सामाजिक-नैतिक आचरण के जरिये वे पुरानी गंदगी से निकलकर नई गंदगी में नख-शिख डूबते चले जाते हैं | पुरातन कूपमंडूकता और रूढ़ियों से मुक्त होते हुए वे स्वयं को मानवीय स्थितियों से भी मुक्त कर लेते हैं | समाज की "नीचता" का प्रतिवाद वे व्यक्तिगत नीचता से और लंपटपन से करते हैं, न कि उच्चतर आत्मिक-सांस्कृतिक-नैतिक-सौंदर्यात्मक मूल्यों से |
 यह पतनशील अराजकतावाद महानगरों के उन बहुतेरे "वामपंथी" बुद्धिजीवियों और लेखकों-कवियों-संस्कृतिकर्मियों में खूब देखने को मिलता है जो सरकारी दफ्तरों, मीडिया-प्रतिष्ठानों या किसी एन.जी.ओ.में चाकरी बजाने के बाद बचे-खुचे समय में वामपंथ की रीयल या वर्चुअल बगिया में भी थोड़ी सैर कर लिया करते हैं , थोड़ा जंतर-मंतर जाकर जनवादी अधिकार वगैरह कर आते हैं, या किसी संगोष्ठी में जाकर क्रांति करने में लापरवाही और गैरजिम्मेदारी दिखाने के लिए क्रांतिकारियों को धिक्कार,फटकार और लताड़ आते हैं |

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