Wednesday, May 24, 2017



"गैरजानकार मनुष्य को समझाना सामान्यतः सरल होता है । उससे भी आसान होता है जानकार या विशेषज्ञ अर्थात् चर्चा में निहित विषय को जानने वाले को समझाना । किंतु जो व्यक्ति अल्पज्ञ होता है, जिसकी जानकारी आधी-अधूरी होती है, उसे समझाना तो स्वयं सृष्टिकर्ता ब्रह्मा के भी वश से बाहर होता है ।"
(भर्तृहरि विरचित नीतिशतकम्, श्लोक 3)


मनुष्य कठिन प्रयास करते हुए मगरमच्छ की दंतपंक्ति के बीच से मणि बाहर ला सकता है, वह उठती-गिरती लहरों से व्याप्त समुद्र को तैरकर पार कर सकता है, क्रुद्ध सर्प को फूलों की भांति सिर पर धारण कर सकता है, किंतु दुराग्रह से ग्रस्त मूर्ख व्यक्ति को अपनी बातों से संतुष्ट नहीं कर सकता है ।
(भर्तृहरि विरचित नीतिशतकम्, श्लोक 4)



कठिन प्रयास करने से संभव है कि कोई बालू से भी तेल निकाल सके, पूर्णतः जलहीन मरुस्थलीय क्षेत्र में दृश्यमान मृगमरीचिका में भी उसके लिए जल पाकर प्यास बुझाना मुमकिन हो जावे, और घूमते-खोजने अंततः उसे खरगोश के सिर पर सींग भी मिल जावे, परंतु दुराग्रह-ग्रस्त मूर्ख को संतुष्ट कर पाना उसके लिए संभव नहीं ।
(भर्तृहरि विरचित नीतिशतकम्, श्लोक 5)

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