Wednesday, May 24, 2017



" मैं टोकता हूँ , आ सामने मुक़ाबले को
तो देव जैसी ये दुनिया
हक़ीर नाहंजार ।
एक आह भरती है
ढह पड़ती है वहीं पर वो
उसीतरह से मैं रहता हूँ
फिर भी शोलाबार ।
और एक शाने - खुदाबंदी से बेरोकटोक
मैं इस खंडहर में हूँ विजय की तरह महमन्त ।
मेरी ज़ुबान का हर कौल आग और अमल
कि मेरा सीना है अब, विधाता का सीना । "
--- कार्ल मार्क्स
( छात्र जीवन में लिखी गई एक कविता का एक अंश )

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