अतीत में राष्ट्रीय आंदोलन के, अपवाद छोड़कर सभी बूर्जुया नेताओं ने राष्ट्रीय चेतना पैदा करने के लिए धर्म का इस्तेमाल किया | गदरी बाबाओं,भगतसिंह और उनके साथियों और सूर्यसेन को छोडकर सभी क्रांतिकारियों ने भी ऐसा ही किया |राष्ट्रीय जागरण के पुरोधा बुद्धिजीवियों ने भी धर्म का इस्तेमाल किया | लातिन अमेरिका और अफ्रीका के देशों में ऐसा नहीं हुआ | चीन में सुन यात-सेन ने भी ऐसा नहीं किया | रूस में हर्ज़ेन,चेर्निशेव्स्की,बेलिन्स्की, दोब्रोलुबोव आदि ने भी ज़ारशाही के विरुद्ध जन-भावना पैदा करने में धर्म का नहीं बल्कि जुझारू भौतिकवादी विचारों का प्रचार किया | भारतीय राष्ट्रवाद शुरू से ही वैचारिक विकलांगता का शिकार था और धर्म की बैसाखी के सहारे खड़ा था | इसकी धर्म-निरपेक्षता शुरू से ही बीमार, खंडित और विकलांग थी | आज धर्मांधता की जो राजनीति हावी है, इसे इतिहास से भी आधार और बल मिला है |
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Thursday, May 18, 2017
अतीत में राष्ट्रीय आंदोलन के, अपवाद छोड़कर सभी बूर्जुया नेताओं ने राष्ट्रीय चेतना पैदा करने के लिए धर्म का इस्तेमाल किया | गदरी बाबाओं,भगतसिंह और उनके साथियों और सूर्यसेन को छोडकर सभी क्रांतिकारियों ने भी ऐसा ही किया |राष्ट्रीय जागरण के पुरोधा बुद्धिजीवियों ने भी धर्म का इस्तेमाल किया | लातिन अमेरिका और अफ्रीका के देशों में ऐसा नहीं हुआ | चीन में सुन यात-सेन ने भी ऐसा नहीं किया | रूस में हर्ज़ेन,चेर्निशेव्स्की,बेलिन्स्की, दोब्रोलुबोव आदि ने भी ज़ारशाही के विरुद्ध जन-भावना पैदा करने में धर्म का नहीं बल्कि जुझारू भौतिकवादी विचारों का प्रचार किया | भारतीय राष्ट्रवाद शुरू से ही वैचारिक विकलांगता का शिकार था और धर्म की बैसाखी के सहारे खड़ा था | इसकी धर्म-निरपेक्षता शुरू से ही बीमार, खंडित और विकलांग थी | आज धर्मांधता की जो राजनीति हावी है, इसे इतिहास से भी आधार और बल मिला है |
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