फ़ासिज़्म को मज़दूर वर्ग और मेहनतकश अवाम को संगठित करके सड़कों पर ही शिकस्त दी जा सकती है | संसदीय जड़वामनों द्वारा प्रसारित-पोषित इस आत्मघाती विभ्रम से मुक्त होना ही होगा कि चुनाव मे हराकर फ़ासिज़्म को पीछे धकेला जा सकता है | फ़ासिज़्म निम्न-बूर्ज्वा वर्ग का धुर प्रतिक्रियावादी सामाजिक आंदोलन है जिसे मज़दूर वर्ग और मेहनतकश अवाम का क्रांतिकारी सामाजिक आंदोलन खड़ा करके ही पीछे धकेला जा सकता है | असाध्य ढांचागत संकट से ग्रस्त पूंजीवाद अब अपने अंत तक फ़ासिज़्म की नर्सरी बना रहेगा | यानी फ़ासिज़्म से लड़ते हुए ही नई समाजवादी क्रांतियाँ परवान चढ़ेंगी | मोदी और योगी के विजय अभियानों पर छाती पीटने और जनता को कोसने से कुछ नहीं होगा | प्रतीकात्मक विरोधों और चुनावी कसरतों से फ़ासिज़्म का भूत जनता की छाती से नहीं उतरेगा | बेशक चुनावों का tactics के रूप मे इस्तेमाल हो पर फैसले के लिए जूझना तो सड़कों पर ही होगा | या तो जमीनी तैयारी के इस काम मे लग जाइए या फिर तैयार रहिए और फासिस्ट जैसे ही झुकने के लिए कहें, रेंगने लगिए |
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Thursday, May 18, 2017
फ़ासिज़्म को मज़दूर वर्ग और मेहनतकश अवाम को संगठित करके सड़कों पर ही शिकस्त दी जा सकती है | संसदीय जड़वामनों द्वारा प्रसारित-पोषित इस आत्मघाती विभ्रम से मुक्त होना ही होगा कि चुनाव मे हराकर फ़ासिज़्म को पीछे धकेला जा सकता है | फ़ासिज़्म निम्न-बूर्ज्वा वर्ग का धुर प्रतिक्रियावादी सामाजिक आंदोलन है जिसे मज़दूर वर्ग और मेहनतकश अवाम का क्रांतिकारी सामाजिक आंदोलन खड़ा करके ही पीछे धकेला जा सकता है | असाध्य ढांचागत संकट से ग्रस्त पूंजीवाद अब अपने अंत तक फ़ासिज़्म की नर्सरी बना रहेगा | यानी फ़ासिज़्म से लड़ते हुए ही नई समाजवादी क्रांतियाँ परवान चढ़ेंगी | मोदी और योगी के विजय अभियानों पर छाती पीटने और जनता को कोसने से कुछ नहीं होगा | प्रतीकात्मक विरोधों और चुनावी कसरतों से फ़ासिज़्म का भूत जनता की छाती से नहीं उतरेगा | बेशक चुनावों का tactics के रूप मे इस्तेमाल हो पर फैसले के लिए जूझना तो सड़कों पर ही होगा | या तो जमीनी तैयारी के इस काम मे लग जाइए या फिर तैयार रहिए और फासिस्ट जैसे ही झुकने के लिए कहें, रेंगने लगिए |
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