Thursday, May 18, 2017




जो दौर मेरी ज़िन्दगी में आये हैं वे मेरी कविता में भी आये हैं | मैंने एकाकी बचपन और दूरदराज़ सबसे कटे हुए देशों में बीती किशोरावस्था से एक विराट मानव-समूह में शरीक होने तक की यात्रा की है | इससे मुझे पूर्णता हासिल हुई , बस | कवियों का पीड़ितात्मा होना पिछली सदी की बात थी | ऐसे भी कवि हो सकते हैं जो जीवन को जानते हों , उनकी समस्याओं को जानते हों , जो विभिन्न धाराओं को पार करते हुए जीवित रहते हों और निराशा से गुजरकर एक परिपूर्णता तक पहुँचते हों |
--पाब्लो नेरूदा ( रीता लेवेत से एक बातचीत )

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