Thursday, May 18, 2017




सोचती हूँ , हमारे देश के इन अंधेरे दिनों को सुदूर भविष्य में शायद उसीतरह याद किया जाएगा जैसे अलेक्सान्द्र ब्लोक की 'प्रतिरोध' कविता में पुराने रूस के उजाड़-मनहूस दिनों को याद किया गया है :
"उन सुदूर उजाड़ वर्षों में
था शासन निद्रा और अंधेरे का लोगों के मन में :
और रूस पर पोबेदोनोस्त्सेव
फैलाये था अपने विशाल उल्लू जैसे पंख |
न रात थी न दिन ,
सिवाय उसके पंखों की मनहूस छाया के |"

(पोबेदोनेस्त्सेव जारकालीन रूस का एक प्रतिक्रियावादी राजनीतिज्ञ था | वह आर्थोडॉक्स चर्च के सर्वोच्च निकाय का प्रोक्यूरेटर भी था |वह असीमित निरंकुशता का कट्टर समर्थक था तथा विज्ञान और प्रबोधन का धुर विरोधी था |क्रांतिकारी आंदोलनों का उसने निर्मम दमन किया |)

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