Tuesday, September 27, 2016







अपने साहित्यिक कार्य में एक अंधी गली तक पहुँचने पर मैंने एक और ज्यादा समझदार रास्ते की तलाश की और उसे दुःख-तक़लीफ़ के विरुद्ध संघर्ष में पाया | यह दुःख कोई आध्यात्मिक या धार्मिक परिकल्पना नहीं है, बल्कि यह उस सामाजिक अन्याय का परिणाम है, जिसके लिए लोग स्वयं दोषी हैं |....मैं रात के शून्य में भटकता हुआ लेखक था ---दीवारों को तोड़कर राह निकालने की कोशिश करता हुआ |लेकिन अब मैं प्रसन्न हूँ | हमें सड़क के बीचोबीच, ज़िन्दगी की ओर चलना चाहिए | ऐसा लेखक, जो राजनीति से अलग-थलग खड़ा रहे, कोरी कल्पना है---पूंजीवाद द्वारा गढ़ी गयी और सम्पोषित |दान्ते के ज़माने में ऐसे लेखक नापैद थे |'कला कला के लिए' का सिद्धान्त बड़े व्यापार ने प्रतिपादित किया है |थिओफील गौतिये ने अमीर व्यापारियों और शोषकों के आदर्शों और मान्यताओं का गुणगान किया था |लेखकों ने ऐसे विचारों को अपना लिया---इससे उभरते हुए पूंजीवाद की विजय हुई | इथियोपिया की ओर उस महान विद्रोही ---आर्थर रिम्बो--- का पलायन शार्लविले के सॉसेज-व्यापारियों की निर्विवाद जीत थी|...हमें एक दूसरी दुनिया का निर्माण करना चाहिए, जो इससे कम ट्रैजिक हो ---खुशियों की एक दुनिया का निर्माण | इसके लिए लेखक को उस विशाल फौज का विनम्र सिपाही होना चाहिए |उसे बिना रुके या दायें-बायें डगमगाये, सीधे क़दम बढ़ाना होगा |
---पाब्लो नेरूदा


कवि कोई 'लघु ईश्वर' नहीं होता,वह दैवी आग चुरा लाने वाला प्रमथ्यु नहीं है, वह किसी विशिष्ट जाति की संतान नहीं होता --- उभयलिंगी या अनिष्टकर |वह एक कारीगर होता है, जिसका एक कार्य होता है,लेकिन यह कार्य अन्य कार्यों से अधिक महत्वपूर्ण नहीं होता, सिवाय तब, जब वह सामाजिक प्रतिक्रिया की शक्तियों का सामना करने की चुनौती स्वीकारता है |और यह भी एक जोखिम-भरा काम है, क्योंकि कवि सच्चाई के रखवाले की हैसियत से बोलता है |
---पाब्लो नेरूदा


मैं आम आदमी के लिए लिखता हूँ , हालाँकि उसकी गँवई आँखें मेरी कविता पढ़ नहीं सकतीं | एक समय आयेगा , जब मेरी एक-एक पंक्ति , वह हवा जिसने मेरी ज़िन्दगी को हिलाया है , उसके कानों तक पहुंचेगी | तब मज़दूर अपनी आँखें उठाएगा , खानों में काम करनेवाला मुस्कुरायेगा , ठीक उस समय जब वह पत्थर तोड़ रहा होगा... ... ...और शायद तब वे कहेंगे --- हाँ , वह एक आदमी था |
---पाब्लो नेरूदा

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