Tuesday, September 27, 2016







सभी देशों की मेहनतक़श जनता के हित में, लेखकों को एक लड़ाकू यथार्थवाद को अपनाने के लिए ललकारा जाना चाहिए। एक समझौताहीन यथार्थवाद, जो सच्‍चाई पर, यानी शोषण उत्‍पीड़न पर पर्दा डालने के सभी प्रयासों से जूझेगा, केवल वही शोषण और उत्‍पीड़न की निन्‍दा कर उनकी कलई खोल सकता है।
-बेर्टोल्‍ट ब्रेष्‍ट

लेखन के ज़रिये लड़ो! दिखाओ कि तुम लड़ रहे हो! ऊर्जस्‍वी यथार्थवाद! यथार्थ तुम्‍हारे पक्ष में है, तुम भी यथार्थ के पक्ष में खड़े हो! जीवन को बोलने दो! इसकी अवहेलना मत करो! यह जानो कि बुर्जुआ वर्ग इसे बोलने नहीं देता! लेकिन तुम्‍हे इजाज़त है। तुम्‍हे इसे बोलने देना चाहिये। चुनो उन जगहों को जहां यथार्थ को झूठ से, ताकत से,चमक-दमक से छुपाया जा रहा है। अन्‍तरविरोधों को उभारो!... अपने वर्ग के लक्ष्‍य को, जो सारी मानवता का लक्ष्‍य है, आगे बढ़ाने के लिये सबकुछ करो, लेकिन किसी भी चीज़ को सिर्फ इसलिये मत छोड़ दो, क्‍योंकि वह तुम्‍हारे निष्‍कर्षों, प्रस्‍तावों और आशाओं के साथ मेल नहीं खाती बल्कि ऐसे निष्‍कर्ष को छोड़ ही दो, बशर्ते सच्‍चाई आड़े न आये, लेकिन ऐसा करते हुए भी इस बात पर ज़ोर दो, कि उस भयंकर लग रही कठिनाई पर जीत हासिल कर ली गयी है। तुम अकेले नहीं लड़ रहे हो, तुम्‍हारा पाठक भी लड़ेगा, यदि तुम उसमें लड़ाई के लिए उत्‍साह भरोगे। तुम अकेले ही समाधान नहीं ढूँढ़ोगे, वह भी उसे ढूॅंढ़ेगा।
-बेर्टोल्‍ट ब्रेष्‍ट


बर्बरता से बर्बरता नहीं पैदा होती; बर्बरता उन व्यावसायिक सौदों से पैदा होती है जिनके लिए बर्बरता की आवश्यकता होती है |
---बेर्टोल्ट ब्रेष्ट






छोटे बदलाव बड़े बदलावों के दुश्मन होते हैं |
---बेर्टोल्ट ब्रेष्ट


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