Saturday, September 17, 2016

एथेंस का पतन हो रहा है क्‍योंकि शब्‍द अपना अर्थ खो रहे हैं।


            
-- सुकरात (469-399 ईसा पूर्व)


साहित्यिक परिदृश्‍य इनदिनों एथेंस बना हुआ है। कविताओं, पुरस्‍कारों, उनके महामहिम निर्णायकों और उनके निर्णयों का औचित्‍य-प्रतिपादन करते, बहस करते मित्रों-पैरोकारों-मुसाहिबों ने इसमें विशेष योगदान किया है। वैसे प्रतिपक्ष भी इसमें पीछे नहीं है।
शुभम श्री की पुरस्‍कृत कविता और अन्‍य कविताओं पर एक नोट लिखना शुरू किया था, फिर फाड़ दिया, इसलिए नहीं कि महा‍महिम लोग कुपित हो जायेंगे, बल्कि इसलिए कि पूर्वाग्रहों के इस माहौल में किसी भी बात को सही सन्‍दर्भ और परिप्रेक्ष्‍य में लिया जायेगा -- इसमें सन्‍देह है।
मुहल्‍ले के गोभक्‍त से प्रधानमंत्री के ''मुझे गोली मार दो, लेकिन हमारे दलित भाइयों को मत मारो'' वाले वक्‍तव्‍य के बारे में पूछा। उसने पास आकर आँखें मटकायी और बोला -- ''ये वो वाला गोली मारना है... उस गीत में जो कहा गया है... अपने दीवाने का कर दे बुरा हाल रे अँखियों से गोली मारे''





No comments:

Post a Comment