Saturday, June 25, 2016

कुछ और खुदरा विचार...






  • खाते-पीते सुसंस्‍कृत-शालीन लोगों की पाचन शक्ति बहुत कमजोर होती है। स्‍वयं वे व्‍यवस्‍था के लिए सहज-सुपाच्‍य होते हैं।
  • रचनाओं में जो हरदम क्षोभ से भरे होते हैं, जीवन में वे प्राय: सुखी-सन्‍तुष्‍ट-सुरक्षित पाये जाते हैं।
  • हरदम नाराज़ और क्षुब्‍ध रहने वाला व्‍यक्ति अपनी सृजनात्‍मकता खो देता है।
  • थके हुए आदमी को पूरी दुनिया थकी हुई नज़र आती है।
  • संतोष ऊब देता है, असंतोष खुशियों की सम्‍भावनाएँ।
  • ठण्‍डे दिनों में हालात की जटिलताओं और बदलाव पर विमर्श एक प्रतिष्ठित बौद्धिक पेशा होता है।
  • जीवितों की कारामुक्ति ज़रूरी है। शवों को वहीं रहने दें।
  • जब नयी राह खोजने का समय होता है, तो धिक्‍कारने वालों, तोहमत लगाने वालों, कोसने वालों, यादों में जीने वालों और राय देने वालों की संख्‍या सबसे अधिक होती है।
  • मैदान में खेल रहे खिला‍ड़ि‍यों के लिए सबसे अधिक सलाहें दर्शक दीर्घा में बैठे लोगों के पास होती है।
  • एक सामान्‍य कूपमण्‍डूक से बौद्धिक कूपमण्‍डूक हज़ारगुना अधिक ख़तरनाक होता है। वह कूपमण्‍डूकों की पूरी सेना खड़ी कर सकता है।
  • यायावरी हर हाल में अच्‍छी नहीं होती। वह ज़ि‍न्‍दगी से मुँह चुराने की एक कोशिश भी हो सकती है।
  • 'सुन्‍दरता ही बचायेगी दुनिया को' -- दोस्‍तोयेव्‍स्‍की ने कहा था। लेकिन जीवन में सुन्‍दरता की बहाली और बचाव के लिए अनथक एक लम्‍बी लड़ाई लड़नी होती है। अत:, यह लड़ाई ही बचायेगी दुनिया को।
  • प्रकृति भी उन्‍हीं को अपने तमाम रहस्‍यों और सौन्‍दर्य का साझीदार बनाती है जो ज़ि‍न्‍दगी से प्‍यार करते हैं और अपने आस-पास के जीवन को सुन्‍दर बनाने के लिए अनथक संघर्ष करते हैं।
  • जो सर्जनात्‍मकता कुछ कालजयी देने को व्‍याकुल हो जाती है, उसकी अकाल मृत्‍यु हो जाती है।
  • बिम्‍ब कौंधते हैं, गढ़े नहीं जाते।
  • कौंधना मौलिकता की निशानी है। यह व्‍यापक प्रेक्षण और जीवनानुभव से पैदा होता है, कोई दिव्‍य गुण नहीं।
  • आलोचना कीजिए, कान का मैल मत निकालिए।
  • एक सच्‍चा आलोचक आपके ग़लत विचारों पर निर्मम आक्रमण करता है, आपके व्‍यक्तित्‍व और आत्‍मसम्‍मान को क्षतिग्रस्‍त नहीं करता।
  • सच्‍चा आलोचक एक वैज्ञानिक विश्‍लेषक होता है। उसकी गतिविधि व्‍यक्तिगत रागद्वेष से संचालित नहीं होती। वह न तो पुरष्‍कृत करता है, न ही दण्डित। वह वैज्ञानिक तर्क से नतीज़े बताता है।
  • जो कुछ भी ग़लत लगता है, उसके विरुद्ध लड़ना यदि आदत बन जाये तो अंधकारमय दिनों में भी खुशियों के लमहे नसीब हो जाते हैं।

          -- कविता कृष्‍णपल्‍लवी





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