Saturday, May 14, 2016





... हां, तो आपके पत्र का उत्‍तर मैंने क्‍यों नहीं दिया? इसलिए कि इस दरम्‍यान मैं बराबर मौत के कगार पर खड़ा लड़खड़ा रहा था। ऐसी हालत में ज़रूरी था कि उस हर क्षण को, जिसमें मैं काम कर सकता था, मैं अपनी पुस्‍तक को पूरा करने में लगाता। इस पुस्‍तक को मैंने अपनी तन्‍दुरुस्‍ती, खुशी तथा परिवार सबको होम कर दिया है। मेरा ख़याल है कि इस सफाई में और कुछ जोड़ने की ज़रूरत अब नहीं है। अक्‍ल के पुतले तथाकथित ''व्‍यावहारिक'' व्‍यक्तियों के नाम से ही मुझे हँसी आ जाती है। अगर कोई बैल बनना चाहता है तो अवश्‍य मानव-जाति के दुख-दर्दों की तरफ से आँखें चुराकर स्‍वयं अपनी चमड़ी की देखभाल वह कर सकता हैं। किन्‍तु, अपनी किताब को, कम-से-कम पाण्‍डुलिपि के रूप में पूरे तौर से समाप्‍त किये बिना  ही यदि मैं चल बसता तो अपने को मैं सचमुच एक ''अव्‍यावहारिक'' आदमी समझता।
किताब का पहला खण्‍ड कुछ ही हफ्तों में हैम्‍बर्ग से प्रकाशित हो जायेगा। उसे ओट्टो मैसमर प्रकाशित कर रहे हैं। किताब का नाम है: 'पूँजी। राजनीतिक अर्थशास्‍त्र की आलोचना'।

-- कार्ल मार्क्‍स
(ए.मेयर के नाम लिखे गये एक पत्र का अंश, 30अप्रैल,1867)

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