पैरों से रौंदे गये आज़ादी के फूल
आज नष्ट हो गये हैं
अँधेरे के स्वामी
रोशनी की दुनिया का ख़ौफ देख
खुश हैं
मगर उस फूल के फल ने
पनाह ली है जन्म देने वाली मिट्टी में,
माँ के गर्भ में,
आँखों से ओझल गहरे रहस्य में
विचित्र उस कण ने अपने को जिला रखा है
मिट्टी उसे ताकत देगी, मिट्टी उसे गर्मी देगी
उगेगा वह एक नया जन्म लेकर
एक नई आज़ादी का बीज वह लायेगा
फाड़ डालेगा बर्फ की चादर वह विशाल वृक्ष
लाल पत्तों को फैलाकर वह उठेगा
दुनिया को रौशन करेगा
सारी दुनिया को, जनता को
अपनी छाँह में इकट्ठा करेगा।
-- लेनिन
(लेनिन की एकमात्र कविता का अंतिम अंश, जो 1905-07 की रूसी क्रांति के बर्बर दमन के बाद लिखी गयी थी)
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