Friday, April 15, 2016






चाहे आप कितना ही परिष्किृत करना चाहें, शुद्ध से शुद्ध बना दें, धर्म पुराने का पूजक और भविष्य की प्रगति का विरोधी रहेगा ही। वह तो श्रद्धा और भक्ति के नाम पर हमारे गले में मुर्दा बाँधने का ही प्रयत्न करेगा। यह संसार जो प्रतिक्षण परिवर्तित हो रहा है, और परिवर्तन भी ऐसा कि इसका अतीत हमेशा अतीत ही रहेगा, वर्तमान रूप नहीं धारण कर सकेगा। ऐसी स्थिति होने पर स्थिरतावादी धर्म हमारे कभी सहायक नहीं हो सकते। जगत की गति के साथ हमें भी सरपट दौड़ना चाहिए, किन्तु धर्म हमें खींचकर पीछे रखना चाहते हैं।
-- राहुल सांकृत्यायन (साम्यवाद ही क्यों?)

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