Wednesday, February 03, 2016

सही बने रहने की कोशिश में


(एक कवि और कर भी क्या सकता है सही बने रहने की कोशिश के सिवा। -- वीरेन डंगवाल)
बहुत कुछ करना होता है एक कवि को
जीवनपर्यन्त सही बने रहने की कोशिश करते हुए।
उसे हर कठिन समय में
अपने लोगों के साथ होना होता है,
इतिहास के तमाम दुर्दिनों की
इन्दराज़ी करनी होती है
और हत्यारों के ख़ि‍लाफ़
साफ़ गले से गवाही देनी होती है।
सही बने रहने की काेशिश जब
एक असंवैधानिक हरक़त घोषित कर दी जाती है
तो कवि को संविधान और क़ानून की किताबों के छल और
कपट पर बेलागलपेट सवाल उठाना होता है।
निरर्थक होती है अकेले सही बनने रहने की कोशिश
वह बहुतेरी ग़लतियों की अनदेखी करती है
बहुतेरी ग़लतियों पर टिकी होती है
और बहुतेरी ग़लतियों को जन्म देती है।
सही बना रह सकता है कवि
सिर्फ़ और सिर्फ़
चीज़ों को सही करने की सामूहिक कोशिशों का भागीदार बनकर,
अपने लोगों की रोज़-रोज़ की लड़ाइयों में शामिल होकर।
अन्यथा, एक खाता-पीता, सुसंस्कृत, भद्र नागरिक भी
निजी जीवन में शालीन सदाचारी होता है
और उसकी चुप्पी हत्यारों के पक्ष में विजय-दुन्दुभि के समान
अनवरत बजती रहती है।
-- कविता कृष्णपल्लवी

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