Tuesday, February 23, 2016







जिस प्रकार बलूत का विशाल और शक्तिशाली वृक्ष दलदली ज़मीन में पैदा नहीं हो सकता, क्योंकि वह दुर्बल और बीमार किस्म के बर्च और नन्हे-नन्हे फर के पेड़ों को ही उगा सकती है, उसी तरह ह्रासग्रस्त यह परिवेश ऐसी महान और प्रचण्ड प्रतिभा को प्रस्फुटित होने से रोक देता है, जो दैनंदिक जीवन की क्षुद्रताओं से ऊपर उठकर गरुड़-दृष्टि से देश और संसार की बहुविध घटनाओं को देख सके, ऐसी प्रतिभा जो भविष्य के पथ और उन महान लक्ष्यों को आलोकित कर सके जो हम जैसे लघु मानवों को उड़ने के लिए पंख प्रदान करते हैं।
फिलिस्टाइनवाद (जाहिल व्यक्तिवादी) अमरबेल जैसा पौधा है, जिसमें आत्म-प्रजनन की  अपार क्षमता है, यह ऐसी बेल है जो जिस पेड़ से भी लिपटती है, उसपर चारों ओर छाकर उसका दम घोंटने की कोशिश करती है। ज़रा कल्पना कीजिए कि कितने महान कवियों को इसने बर्बाद किया है।
फिलिस्टाइनवाद सारे संसार का एक अभिशाप है। यह व्यक्तित्व को अन्दर से ही खा जाता है, जिस तरह गिडार फल को खा जाती है। यह ऐसी जंगली सरकंडों की झाड़ी है जिसकी अनवरत खर-खर सौन्दर्य की घ‍ंटियों और जीवन के उल्लसित सत्‍य के सबल स्वरों को नीचे दबा देती है। यह एक अतल दलदल है जो अपने बदबूदार गर्तों में जीनियस और प्रेम, कविता और विचार, कला और विज्ञान को खींच लेती है।
हम देखते हैं कि मानवजाति के भीमकाय शरीर के इस सड़े हुए घाव ने व्यक्तित्व को पूरी तरह नष्ट कर दिया है, उसके नास्तिवादी व्यक्तिवाद के ज़हर से भर दिया है और मनुष्य को एक विशेष प्रकार के ख़तरनाक, उच्छृंखल जन्तु में परिवर्तित कर दिया है, ऐसा प्राणी बना दिया  है जिसके विचारों में कोई आन्तरिक संगति नहीं है, जिसके दिमाग और स्नायुओं का सन्तुलन नष्ट हो चुका है, जिसके कान अपनी अन्ध-वृत्तियों की यप-यप और उपने हृदयावेगों की कुत्सित फुसफुसाहटों के अलावा और किसी भी स्वर को सुनने में असमर्थ है।
फिलिस्टाइन दृष्टिकोण के ही कारण हम प्रमुथस से चलकर आज उच्छृंखल गुंडे तक पहुँच गये हैं।
लेकिन गुंडा तो स्‍वंय ही फिलिस्टाइनवाद की ही सन्तान है, उसके ही वीर्य से जन्मा है। इतिहास ने पहले से ही उसके लिए एक पितृघाती की भूमिका नियत कर दी है और यह पितृघाती ही बनकर रहेगा। जिस पिता ने उसको पैदा किया था, उसकी ही वह हत्या करेगा।
क्योंकि यह नाटक हमारे दुश्मन के घर में खेला जा रहा है, इसलिए हम अट्टहास करते हुए खुशी से इसे देख सकते है, लेकिन हमें दुख सिर्फ इस बात से होता है कि फिलिस्टाइनवाद स्वयं अपने पितृघाती बेटे के विरुद्ध जो लड़ाई कर रहा है उसमें योग्य और प्रतिभाशाली लोग भी खींच लिए गये हैं। संवेदनशील और प्रतिभावान लोगों को तेजी से विघटित होने वाले परिवेश से उठनेवाली सड़ांध के ज़हर से नष्ट होते देखकर दुख होता है।
-- मक्सिम गोर्की ('व्यक्तित्व का विघटन', 1909)

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