Saturday, October 03, 2015

धर्म के प्रश्‍न पर मार्क्‍सवादी अवस्थिति (तीन)

धर्म को एक व्‍यक्तिगत मामला घोषित कर दिया जाना चाहिएा समाजवादी अक्‍सर धर्म के प्रति अपने दृष्टिकोण को इन्‍हीं शब्‍दों में व्‍यक्‍त करते हैं। किन्‍तु किसी प्रकार की गलतफहमी न हो इसलिए आवश्‍यक है कि इन शब्‍दों के अर्थ की बिल्‍कुल ठीक-ठाक व्‍याख्‍या कर दी जाय। हम माँग करते हैं कि जहां तक राज्‍य का सम्‍बन्‍ध है, उसे धर्म को एक व्‍यक्तिगत चीज़ मानना चाहिए। किन्‍तु जहां तक हमारी पार्टी का सम्‍बन्‍ध है, धर्म को हम किसी भी प्रकार से एक व्‍यक्तिगत मामला नहीं मान सकते। धर्म से राज्‍य का कोई भी सम्‍बन्‍ध नहीं होना चाहिए और धामिर्क सोसाइटियों का भी सरकार की सत्‍ता से कोई सरोकार नहीं रहना चाहिए। प्रत्‍येक व्‍यक्ति को पूर्ण स्‍वतंत्रता होनी चाहिए कि वह चाहे जिस धर्म को माने, या चाहे तो किसी धर्म को न माने, अर्थात नास्तिक हो, जो आम तौर से, हर समाजवादी होता है। नागरिकों के साथ धामिर्क विश्‍वासों के आधार पर भेदभाव किया जाना सर्वथा असहनीय है। सरकारी कागजों में तो नागरिक के धर्म का उल्‍लेख भी निस्‍सन्‍देह समाप्‍त कर दिया जाना चाहिए। स्‍थापित चर्च को कोई सहायता नहीं दी जानी चाहिए और न पादरियों को तथा अन्‍य धामिर्क सोसायटियों को ही राज्‍य की ओर से किसी प्रकार के भत्‍ते दिये जाने चाहिए। इन्‍हें सम-विचार रखने वाले नागरिकों की पूर्ण रूप से स्‍वतंत्र संस्‍थाएं बन जाना चाहिए, ऐसी संस्‍थाएं जो राज्‍य से पूरी तरह स्‍वतंत्र हों।
... ...  ... ... ... ... ... ... ...
जहां तक समाजवादी सर्वहारा वर्ग की पार्टी का प्रश्‍न है, उसके लिए धर्म व्‍यक्तिगत मामला नहीं है। हमारी पार्टी मज़दूर वर्ग की मुक्ति के लिए संघर्ष करने वाले वर्ग-चेतन, अग्रणी योद्धाओं का संगठन है। ऐसा संगठन धार्म‍िक विश्‍वासों के रूप में प्रकट होने वाले वर्ग-चेतना के अभाव, अज्ञान अथवा रूढिवाद के सम्‍बन्‍ध में तटस्‍थ नहीं रह सकता, न उसे रहना ही चाहिएा हम चर्च से राज्‍य के बिल्‍कुल अलग कर दिये जाने की मांग करते हैं, तकि धार्म‍िक  कुहासे के खिलाफ हम शुद्ध रूप से सैद्धान्तिक और केवल वैचारिक अस्‍त्रों के माध्‍यम से, अपने समाचार-पत्रों और भाषणों के माध्‍यम से संघर्ष कर सकें। लेकिन अपने संगठन की, रूसी सामाजिक जनवादी मज़दूर पार्टी की, स्‍थापना ठीक ऐसे ही संघर्ष के लिए, मज़दूरों के हर प्रकार के धार्म‍िक शोषण के विरूद्ध संघर्ष के लिए ही हमने की है। और हमारे लिए वैचारिक संघर्ष कोई व्‍यक्तिगत मामला नहीं है, बल्कि वह सारी पार्टी का, समस्‍त सर्वहारा वर्ग का मामला है।
यदि बात ऐसी ही है तो अपने कार्यक्रम में यह घोषणा क्‍यों नहीं हम कर देते कि हम अनीश्‍वरवादी हैं? अपनी पार्टी में ईसाइयों और ईश्‍वर में आस्‍था रखने वाले अन्‍य धर्मावलम्बियों के शामिल होने पर हम रोक क्‍यों नहीं लगा देते?
इस प्रश्‍न का उत्‍तर ही उन अतिमहत्‍वपूर्ण अन्‍तरों को स्‍पष्‍ट कर देगा जो बुर्जुआ जनवादियों और सामाजिक जनवादियों द्वारा धर्म के प्रश्‍न को उठाये जाने के तरीकों में पाया जाता है।
हमारा कार्यक्रम पूर्णतया वैज्ञानिक और इसके अतिरिक्‍त, भौतिकवादी विश्‍व-दृष्टिकोण पर आधारित है। इसलिए हमारे कार्यक्रम की व्‍याख्‍या में धार्मि‍क धुन्‍ध के सच्‍चे ऐतिहासिक और आर्थिक स्रोतों की व्‍याख्‍या का भी आवश्‍यक रूप से समावेश है। हमारे प्रचार-कार्य में अनीश्‍वरवाद का प्रचार भी आवश्‍यक रूप से शामिल है; उपयुक्‍त वैज्ञानिक साहित्‍य को प्रकाशित करना भी -- जिस पर एकतंत्रीय शासन-प्रणाली ने अभी तक प्रतिबन्‍ध लगा रखा था और जिसे प्रकाशित करने पर दण्‍ड दिया जाता था -- अब हमारी पार्टी के कार्य का एक अंग बन जाना चाहिए। अब हमें सम्‍भवत: एंगेल्‍स की उस सलाह का अनुकरण करना होगा जो एक बार जर्मन समाजवादियों को उन्‍होंने दी थी: फ्रान्‍स के अठारहवीं शताब्‍दी के प्रबोधकों और अनीश्‍वरवादियों के साहित्‍य का अनुवाद करो और उसका व्‍यापक प्रचार करो।
परन्‍तु धर्म के प्रश्‍न को अरूप, आदर्शवादी ढंग से वर्ग-संघर्ष से असम्‍बद्ध एक ''बौद्धिक'' प्रश्‍न के रूप में उस तरह उठाने की गलती का शिकार हमें किसी भी दशा में नहीं बनना चाहिए, जिस तरह कि पूँजीपति वर्ग के उग्रवादी-जनवादी अक्‍सर उसे उठाया करते हैं। यह सोचना मूर्खता होगी कि मज़दूर जन-समुदायों के सीमाहीन शोषण और संस्‍कारहीनता पर आधारित समाज में धार्म‍िक पूर्वाग्रहों को केवल प्रचारात्‍मक साधनों से ही समाप्‍त कर दिया जा सकता है। इस बात को भुला देना कि मानव जाति पर लदा धर्म का जुआ समाज पर लदे आर्थिक जुए का ही प्रतिबिम्‍ब और परिणाम है, पूँजीवादी संकीर्णता होगी। सर्वहारा वर्ग यदि पूँजीवाद की काली शक्तियों के विरूद्ध स्‍वयं संघर्ष करके प्रबुद्ध नहीं बनता तो पुस्तिकाओं और उपदेशों की कोई भी मात्रा उसे प्रबुद्ध नहीं बना सकेगी। धरती पर स्‍वर्ग की रचना करने के लिए उत्‍पीडित वर्ग के वर्तमान वास्‍तविक क्रान्तिकारी संघर्ष में सर्वहारा वर्ग की एकता हमारे लिए परलोक-सम्‍बन्‍धी स्‍वर्ग के बारे में उसके दृष्टिकोण की एकता से कहीं अधिक महत्‍वपूर्ण है।
-- व्‍ला. इ. लेनिन
(समाजवाद और धर्म)

No comments:

Post a Comment