Saturday, October 03, 2015

यह आवश्‍यक है कि जीवन और साहित्‍य को उन तमाम धार्म‍िक रूपकों से मुक्‍त किया जाये, जिनका उदय उससमय हुआ था जब मानव जाति अपनी निहित शक्ति से अवगत नहीं थी, बाह्य जगत के प्रभाव ने उसे पूर्णतया अभिभूत कर लिया था और अपनी अनगढ़, अनुभवी कल्‍पना के प्रभाव में सभी चीज़ों में वह किसी रहस्‍यमय शक्ति के अस्तित्‍व का भान पाती थी।
-- निकोलाई दोब्रोल्‍युबोव
रूस के महान क्रांतिकारी विचारक(1836-1861)

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