आँसू, खून, पसीना, आग, पानी, लोहा, मिट्टी, मृत्यु, हार, जीत, राख, थकावट, ताजगी, प्यार, बेवफाई, नफरत, पत्थर, कुहासा, रोशनी, अँधेरा, दोस्ती, विश्वासघात, रंग, सपने, स्मृति, विस्मृति आदि-आदि चीजों को कविगण बटोर लाते हैं, अपने-अपने तरीकों से उन्हें मिलाते हैं, गूँथते हैं, गलाते हैं, ढालते हैं, छानते हैं, निथारते हैं, तमाम-तमाम रहस्यमय रासायनिक प्रक्रियाओं से गुजारते हैं और फिर अपने-अपने ढंग की कविताएँ बनाते हैं। इस कीमियागीरी के बेशक कुछ आम नियम होते हैं, लेकिन व्यक्तिगत समझ, हुनर, अनुभव, कौशल की विशिष्टता उनसे कहीं अधिक महत्वपूर्ण होती है। हर सच्ची कविता मौलिक और विशिष्ट होती है। नकल करके और प्रभाव-छायाओं तले रची कविताएँ फूहड़, उबाऊ, या प्रहसनात्मक होती हैं। कविता में मौलिक और साहसी वही होता है, जो जीवन में मौलिक और साहसी होता है। कविता लिखने के लिए अपने भीतर एक बच्चे को सदा जीवित रखना होता है और एक अड़ियल योद्धा को भी। कविता लिखने के लिए जीवन से कविता के अपहर्त्ताओं की पहचान करनी होती है और उनके खिलाफ खड़ा होना होता है। इतिहास के अंधड़ में बनी-ठनी, सजी-सँवरी, छैल-छबीली कविताएँ कुछ दशकों बाद उड़ जाती हैं और जीवन भार से लदी-फदी कविताएँ स्मृतियों, स्वप्नों और दिनचर्या में शिलालेखों के समान बची रह जाती हैं।
-- कविता कृष्णपल्लवी
-- कविता कृष्णपल्लवी
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