Saturday, June 20, 2015






अकादम‍कि क्षेत्र में जो भी सीमि‍त बुर्जुआ जनवादी स्‍पेस रहा है, वह नवउदारवादी दौर में लगातार तेजी से छीजता-सिकुड़ता चला गया है। नरेन्‍द्र मोदी सरकार के शासन काल में यह प्रक्रिया बेलगाम रफ़्तार से आगे बढ़ रही है। ताज़ा उदाहरण माखनलाल चतुर्वेदी राष्‍ट्रीय पत्रकारि‍ता विश्‍वविद्यालय, भोपाल का है। इस विश्‍वविद्यालय को एशिया का सबसे पहला पत्रकारिता विश्‍वविद्यालय होने का सम्‍मान प्राप्‍त रहा है। 

2010 में बी.के. कुठियाला इस विश्‍वविद्यालय के कुलपति बने। तबसे यह संस्‍थान लगातार पतन की ढलान पर है। घनघोर नौकरशाही, चरम भ्रष्‍टाचार, शिक्षा और प्रशिक्षण के गिरते स्‍तर, छिनती सुविधाओं, चमचागीरी न करने वाले प्राध्‍यापकों की प्रताड़ना आदि के लगातार जारी सिलसिले ने जब छात्रों का जीना मुहाल कर दिया तो उन्‍होंने एकजुट होकर आवाज़ उठाने का निर्णय लिया। कुलपति कुठियाला के विरुद्ध विश्‍वविद्यालय के छात्रों के आन्‍दोलन को देश के पत्रकारों, बुद्धिजीवियों और छात्रों का व्‍यापक समर्थन मि‍ल रहा है। कुलपति महोदय केन्‍द्र और राज्‍य की भाजपा सरकारों के वरदहस्‍त के बावजूद बेचैन और परेशान हैं। आन्दोलनकारी छात्रों को तरह-तरह से धमकाया और प्रताड़ि‍त किया जा रहा है। लेकिन छात्र झुकने को तैयार नहीं हैं।

विश्‍वविद्यालय के अकादमि‍क स्‍तर का आलम आज यह है कि प्रोफेसरों और पत्रकारों के व्‍याख्‍यान की जगह वहाँ स्‍वामि‍यों के प्रवचन कराये जाते हैं। सांस्‍कृतिक राष्‍ट्रवाद और एकात्‍म मानववाद पर से‍म‍ि‍नार होते हैं। पूरा विश्‍वविद्यालय मानो संघ परिवार का अनुषंगी संगठन बनकर रह गया है।
हिंदुत्‍ववादी फासिस्‍ट अकादमि‍क जगत के जनवादी स्‍पेस पर जो हमले कर रहे हैं तथा शिक्षा, संस्‍कृति और मीडिया के फासिस्‍टीकरण की जो अंधाधुंध मुहिम चलाये हुए हैं, उनके विरुद्ध सभी जनपक्षधर, सेक्‍युलर, प्रगतिशील बुद्धिजीवियों और छात्रों-युवाओं की सक्रिय और मुखर एकजुटता वक्‍त की फौरी ज़रूरत है। माखनलाल चतुर्वेदी विश्‍वविद्यालय के छात्रों ने एक ज़रूरी और प्रशंसनीय पहल ली है। ज़रूरत इस बात की है कि उनका पुरजोर समर्थन किया जाये, उनकी आवाज़ में अपनी आवाज़ मि‍लायी जाये।

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