अखिलेश सरकार की पुलिस की तमाम आतंकवादी दमनकारी कार्रवाइयों के बावजूद सोनभद्र में कनहर सिंचाई परियोजना के विस्थापितों का संघर्ष जारी है। ठेकेदारों के गुर्गे और स्थानीय गुण्डों की जुटाई गयी भीड़ 'कनहर फैक्ट फाइण्डिंग टीम' के लोगों को कल दिन भर घेरे रही। पुलिस के लोग इस भीड़ को हटाने के बजाय उसके साथ मिलकर ठहाके लगा रहे थे। अन्ततोगत्वा 'फैक्ट फाइण्डिंग टीम' को कानून व्यवस्था बनाये रखने के नाम पर इलाका छोड़ने के लिए मज़बूर कर दिया गया। तीन दिनों पहले के गोलीकाण्ड की पूरी सच्चाई अभी भी सामने नहीं आ सकी है। बस इतना पता चल सका है कि घायलों की संख्या एक दर्जन से अधिक है।
अखिलेश यादव दरअसल अपने पिताश्री के ही पदचिन्हों पर चल रहे हैं। पहली बार मुख्य मंत्री बनने के बाद मुलायय सिंह ने बर्बर पुलिसिया दमन का अपना पहला प्रयोग इसी सोनभद्र जिले में अबसे पच्चीस वर्षों पहले किया था, डाला सीमेण्ट कारखाने के मज़दूरों पर गोली चलवाकर।
तब केन्द्र और उत्तर प्रदेश दोनों ही जगहों पर समाजवादी जनता पार्टी की कांग्रेस समर्थित अल्पमत सरकारें थीं। चंद्रशेखर देश के प्रधानमंत्री थे और मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री। उदारीकरण-निजीकरण की नयी आर्थिक नीतियों की विधिवत घोषणा तो 1991 में सत्तारूढ़ होने के बाद नरसिंह राव की सरकार ने की थी, लेकिन कांग्रेसी बैसाखियों पर टिकी चंद्रशेखर की अल्पायु सरकार वस्तुत: 1990 में ही इस दिशा में कदम बढ़ा चुकी थी। डाला सीमेण्ट फैक्ट्री उत्तर प्रदेश राज्य सीमेण्ट निगम की थी, जिसका मुलायम सिंह यादव हर कीमत पर निजीकरण करना चाहते थे। इसके विरोध में कारखाना के हड़ताली मज़दूर 'रास्ता रोको' और धरना की मुहिम चला रहे थे। 2जून, 1991 को मुलायम सिंह यादव सरकार की पुलिस ने बिना किसी चेतावनी के हड़ताली मज़दूरों पर गोलियों की बरसात कर दी। पुलिस ने लाशों को आनन-फानन में ठिकाने लगाने और नदी में बहाने की कोशिश की। कुल आठ लाशें ही बाद में बरामद हो सकीं। दर्जनों गम्भीर रूप से घायल लोग पुलिस से बचते-बचाते अस्पतालों तक पहुँचे, जिनमें से एक की बाद में मौत हो गयी। जल्दी ही केन्द्र में चन्द्रशेखर सरकार के पतन के बाद कांग्रेस सत्ता में आयी और राज्य में मुलायम सरकार के पतन के बाद भाजपा की सरकार बनीं। डाला गोलीकाण्ड के जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। डाला के मज़दूरों को आज तक इंसाफ नहीं मिला। नवउदारवाद की दिशा में जब हिंदुस्तान की हुकूमत शुरुआती कदम उठा रही थी, तब डाला के मज़दूरों ने अपने खून से प्रतिरोध के नये सिलसिले की शुरुआत की थी।
डाला गोलीकाण्ड के बाद, जिस दूसरी बर्बरता के कलंक को मुलायम सिंह यादव कभी नहीं मिटा सकते, वह है उत्तराखण्ड के आन्दोलनकारियों पर रामपुर तिराहे पर हुआ पुलिसिया अत्याचार। उस नृशंस घटना में कितनी जानें गयीं, कितने घायल हुए और कितनी स्त्रियों के साथ बलात्कार हुए, यह ठीक-ठीक आज तक नहीं पता। मज़दूर आन्दोलनों को कुचलने का सपा सरकार का पुराना रिकार्ड रहा है।
अखिलेश मुलायम सिंह यादव के ''समाजवाद'' के योग्य उत्तराधिकारी हैं। पिता के नक़्शेकदम पर आगे बढ़ रहे हैं। लोहिया काल के समाजवादी आन्दोलन करते थे, मुलायम-अखिलेश काल के समाजवादी आन्दोलनों को कुचलने में माहिर हैं।
तब केन्द्र और उत्तर प्रदेश दोनों ही जगहों पर समाजवादी जनता पार्टी की कांग्रेस समर्थित अल्पमत सरकारें थीं। चंद्रशेखर देश के प्रधानमंत्री थे और मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री। उदारीकरण-निजीकरण की नयी आर्थिक नीतियों की विधिवत घोषणा तो 1991 में सत्तारूढ़ होने के बाद नरसिंह राव की सरकार ने की थी, लेकिन कांग्रेसी बैसाखियों पर टिकी चंद्रशेखर की अल्पायु सरकार वस्तुत: 1990 में ही इस दिशा में कदम बढ़ा चुकी थी। डाला सीमेण्ट फैक्ट्री उत्तर प्रदेश राज्य सीमेण्ट निगम की थी, जिसका मुलायम सिंह यादव हर कीमत पर निजीकरण करना चाहते थे। इसके विरोध में कारखाना के हड़ताली मज़दूर 'रास्ता रोको' और धरना की मुहिम चला रहे थे। 2जून, 1991 को मुलायम सिंह यादव सरकार की पुलिस ने बिना किसी चेतावनी के हड़ताली मज़दूरों पर गोलियों की बरसात कर दी। पुलिस ने लाशों को आनन-फानन में ठिकाने लगाने और नदी में बहाने की कोशिश की। कुल आठ लाशें ही बाद में बरामद हो सकीं। दर्जनों गम्भीर रूप से घायल लोग पुलिस से बचते-बचाते अस्पतालों तक पहुँचे, जिनमें से एक की बाद में मौत हो गयी। जल्दी ही केन्द्र में चन्द्रशेखर सरकार के पतन के बाद कांग्रेस सत्ता में आयी और राज्य में मुलायम सरकार के पतन के बाद भाजपा की सरकार बनीं। डाला गोलीकाण्ड के जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। डाला के मज़दूरों को आज तक इंसाफ नहीं मिला। नवउदारवाद की दिशा में जब हिंदुस्तान की हुकूमत शुरुआती कदम उठा रही थी, तब डाला के मज़दूरों ने अपने खून से प्रतिरोध के नये सिलसिले की शुरुआत की थी।
डाला गोलीकाण्ड के बाद, जिस दूसरी बर्बरता के कलंक को मुलायम सिंह यादव कभी नहीं मिटा सकते, वह है उत्तराखण्ड के आन्दोलनकारियों पर रामपुर तिराहे पर हुआ पुलिसिया अत्याचार। उस नृशंस घटना में कितनी जानें गयीं, कितने घायल हुए और कितनी स्त्रियों के साथ बलात्कार हुए, यह ठीक-ठीक आज तक नहीं पता। मज़दूर आन्दोलनों को कुचलने का सपा सरकार का पुराना रिकार्ड रहा है।
अखिलेश मुलायम सिंह यादव के ''समाजवाद'' के योग्य उत्तराधिकारी हैं। पिता के नक़्शेकदम पर आगे बढ़ रहे हैं। लोहिया काल के समाजवादी आन्दोलन करते थे, मुलायम-अखिलेश काल के समाजवादी आन्दोलनों को कुचलने में माहिर हैं।
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