अख़बार
इतने सारे,
इतने सारे पेड़ों को काटते हैं लगातार
इतने सारे कारख़ानों में
इतने सारे मज़दूरों की श्रमशक्ति को निचोड़कर
तैयार करते हैं इतना सारा काग़ज
जिनपर दिन-रात चलते छापाखाने
छापते हैं इतना सारा झूठ
रोज़ सुबह इतने सारे दिमागों में उड़ेल देने के लिए।
इतने सारे पेड़ कटते हैं
झूठ की ख़ातिर।
इतनी सारी मशीनें चलती हैं
झूठ की ख़ातिर।
इतने सारे लोग खटते हैं महज़ ज़िन्दा रहने के लिए
झूठ की ख़ातिर
ताकि लोग पेड़ बन जायें,
ताकि लोग मशीनों के कल पुर्जे़ बन जायें,
ताकि लोग, जो चल रहा है उसे
शाश्वत सत्य की तरह स्वीकार कर लें।
लेकिन लोग हैं कि सोचने की आदत
छोड़ नहीं पाते
और शाश्वत सत्य का मिथक
टूटता रहता है बार-बार
और वर्चस्व को कभी नहीं मिल पाता है अमरत्व।
इतने सारे मज़दूरों की श्रमशक्ति को निचोड़कर
तैयार करते हैं इतना सारा काग़ज
जिनपर दिन-रात चलते छापाखाने
छापते हैं इतना सारा झूठ
रोज़ सुबह इतने सारे दिमागों में उड़ेल देने के लिए।
इतने सारे पेड़ कटते हैं
झूठ की ख़ातिर।
इतनी सारी मशीनें चलती हैं
झूठ की ख़ातिर।
इतने सारे लोग खटते हैं महज़ ज़िन्दा रहने के लिए
झूठ की ख़ातिर
ताकि लोग पेड़ बन जायें,
ताकि लोग मशीनों के कल पुर्जे़ बन जायें,
ताकि लोग, जो चल रहा है उसे
शाश्वत सत्य की तरह स्वीकार कर लें।
लेकिन लोग हैं कि सोचने की आदत
छोड़ नहीं पाते
और शाश्वत सत्य का मिथक
टूटता रहता है बार-बार
और वर्चस्व को कभी नहीं मिल पाता है अमरत्व।
No comments:
Post a Comment