Friday, May 29, 2015

केजरीवाल गिरोह बनाम भूषण-योगेन्‍द्र चौकड़ी : झगड़े के पीछे का सच




-- कविता कृष्‍णपल्‍लवी

अन्‍ततोगत्‍वा प्रशांत भूषण, योगेन्‍द्र यादव, आनन्‍द कुमार और अजीत झा आम आदमी पार्टी  से निकाल बाहर किये गये। धर्मवीर गाँधी से संसदीय दल का नेता पद छीनकर कॉमेडियन भगवंत मान को दे‍ दिया गया। इस घटनाक्रम पर आश्‍चर्य, दु:ख और मोहभंग के शिकार वही लोग हो रहे हैं, जो पार्टियों की नीतियों का विश्‍लेषण करने के बजाय लोकलुभावन नारों के चक्‍कर-चपेट में फँसते रहते हैं। इनमें वे अधकचरे वामपंथी भी शामिल हैं जिन्‍हें आर्थिक-राजनीतिक विश्‍लेषण के जरिए वर्ग विश्‍लेषण करने की कोई तमीज़ नहीं होती। याद दिला दें कि ये धर्मवीर गाँधी वही व्‍यक्ति हैं जो कभी क्रांतिकारी वामपंथी हुआ करते थे। धीदो गिल और उन जैसे तमाम एन.आर.आई. भूतपूर्व वामपंथी 'आपिये' केजरीवाल की आलोचना करने वालों पर कुछ दिनों पहले फेसबुक पर गालियों की बौछार कर दिया करते थे। अब ये लोग छाती पीट रहे हैं। कोई बात नहीं, अब इन जैसों लोगों को प्रशांत भूषण-योगेन्‍द्र गुट पर अपनी उम्‍मीदें टिका देनी चाहिए, ताकि भविष्‍य में फिर छाती पीट सकें और रो-बिसूर सकें।
ग़ौरतलब है कि प्रशांत भूषण एण्‍ड कं. का केजरीवाल गिरोह से बुनियादी नीतियों पर कोई मतभेद नहीं है। वे सिर्फ और सिर्फ पार्टी में जनवाद की कमी और भ्रष्‍टाचार को ही मुद्दा बना रहे हैं। केजरीवाल ने जब मेट्रो के कर्मचारियों पर और फिर दिल्‍ली के ठेका मज़दूरों  पर बर्बरतापूर्वक लाठियाँ चलवाईं तो इन महानुभावों ने इसपर कोई बयान नहीं दिया। सत्‍तारूढ़ होते ही केजरीवाल ने दिल्‍ली के छोटे कारख़ानेदारों को पर्यावरण-सम्‍बन्‍धी बन्दिशों से छूट दे दी। 'सरकार का काम बसें चलवाना नहीं है' -- यह कहते हुए केजरीवाल ने डी.टी.सी. के निजीकरण का स्‍पष्‍ट पूर्व संकेत दे दिया है। सी.आई.आई. की बैठक में पूँजीपतियों के सामने दाँत चियारते हुए केजरीवाल ने एकदम नरेन्‍द्र मोदी की भाषा में यह आश्‍वासन दिया कि दिल्‍ली को भ्रष्‍टाचार मुक्‍त करके वह निवेश के लिए अनुकूल माहौल तैयार करेगा। अब आप पार्टी यह बेहयाई से कह रही है कि श्रम कानूनों को लागू करवाना सरकार की जिम्‍मेदारी नहीं है। इन सभी मुद्दों पर प्रशांत भूषण-योगेन्‍द्र यादव गुट ने कोई बयान नहीं दिया। जाहिर है, इन बुनियादी नीतिगत मसलों पर इस गुट की भी वही राय है जो केजरीवाल गिरोह की है। पार्टी  की नीतियाँ तय करने वालों में योगेन्‍द्र यादव, प्रशांत भूषण और आनंद कुमार की मुख्‍य भूमिका थी। वे भला इन मुद्दों पर किस मुँह से बोलेंगे और क्‍या बोलेंगे?
आम आदमी पार्टी और उससे निकाला गया गुट -- दोनों ही राष्‍ट्रीय स्‍तर पर वैकल्पिक राजनीति का मॉडल प्रस्‍तुत करने का दावा करते हैं। लेकिन दूसरी ओर, सबसे महत्‍वपूर्ण बुनियादी मुद्दों पर कोई नीति वक्‍तव्‍य रखने से बचते हैं। पूछा जा सकता है कि (।) नवउदारवाद की आर्थिक नीतियों पर उनका स्‍टैण्‍ड क्‍या है, वे खुलकर उनका विरोध क्‍यों नहीं करते (हालाँकि टुकड़े-टुकड़े में उनकी बातों से स्‍पष्‍ट हो जाता है कि नवउदारवाद से उनका कोई विरोध नहीं है), (2) कश्‍मीर और पूर्वोत्‍तर के राज्‍यों में 'आफ्स्‍पा' लगाकर परोक्ष सैनिक शासन जारी रखने और बर्बर दमन पर उनका स्‍टैण्‍ड क्‍या है, (3) छत्‍तीसगढ़ में आतंकवाद-निर्मूलन के नाम पर राज्‍य द्वारा जनता के विरुद्ध चलाये जा रहे युद्ध पर उनका क्‍या स्‍टैण्‍ड है, (4) मज़दूरों पर लगातार बढ़ते ज़ुल्‍म, श्रम कानूनों की निष्‍प्रभाविता और मोदी के श्रम सुधारों पर वे चुप्‍पी क्‍यों साधे रहते हैं, (5) भूमि-सुधारों के प्रश्‍न पर उनका स्‍टैण्‍ड क्‍या है, (6) साम्राज्‍यवादी देशों से हथियारों की बड़े पैमाने की खरीदारी पर उनका स्‍टैण्‍ड क्‍या है, (7) इस्रायल से भारत की निकटता, मध्‍यपूर्व और उक्रेन में पश्चिमी साम्राज्‍यवादी देशों की साजिशों, ईरान, वेनेजुएला, उत्‍तर कोरिया जैसे देशों की साम्राज्‍यवादी घेरेबन्‍दी, फिलिस्‍तीन पर जायनवादी अत्‍याचार जैसे वैदेशिक मामलों और अन्‍तरराष्‍ट्रीय मसलों पर उनका क्‍या स्‍टैण्‍ड है? -- ऐसे तमाम सवालों पर राष्‍ट्रीय विकल्‍प प्रस्‍तुत करने का दावा करने वाले लोग भला चुप कैसे रह सकते  हैं? लेकिन इसपर केजरीवाल और उसका विरोध करने वाले -- दोनों ही चुप रहेंगे, क्‍योंकि बोलते ही उनकी असलियत सामने आ जायेगी।
हम काफी पहले से कहते आ रहे हैं कि केजरीवाल की पार्टी कालांतर में या तो बिखर जायेगी और इसका‍ मध्‍यवर्गीय सामाजिक आधार भाजपा जैसे धुर दक्षिणपंथी दल के साथ जुड़ जायेगा, या फिर यह स्‍वयं एक छोटी बुर्जुआ पार्टी के रूप में बुर्जुआ संसदीय राजनीति में व्‍यवस्थित हो जायेगी। आज ये दोनों ही प्रक्रियाएँ साथ-साथ चल रही हैं और हमारी उम्‍मीद से कहीं ज्‍यादा तेज गति से आगे बढ़ रही हैं। व्‍यवस्‍था की तीसरी सुरक्षापंक्ति और लोकलुभावन धोखे की टट्टी के रूप में आप जब निष्‍प्रभावी होती जा रही है तो यह भूमिका निभाने के  लिए अब योगेन्‍द्र-प्रशांत-आनंद-अजीत गुट स्‍वयं को तैयार कर रहा है।
इन दोनों गुटों के बीच का अन्‍तरविरोध दरअसल लोकरंजकतावाद की दो किस्‍मों के बीच  का  अन्‍तरविरोध है। एक ओर दक्षिणपंथी झुकाव वाला 'केजरीवाल ब्राण्‍ड' लोकरंजकतावाद है तो दूसरी ओर ''वामपंथी'' (यानी सामाजिक जनवादी) झुकाव वाला 'प्रशांत-योगेन्‍द्र ब्राण्‍ड' लोकरंजकतावाद है। दोनों के वर्ग चरित्र एक हैं, बुनियादी मुद्दों पर स्‍टैण्‍ड एक है। दोनों ही लोकरंजकतावाद के दो संस्‍करण हैं, बुर्जुआ राजनीति के दो रूप हैं। कार्यप्रणाली और संघटन की भिन्‍नता की दृष्टि से इनमें टकराव है। जिन्‍हें प्रशांत-योगेन्‍द्र-आनंद-अजीत की  नौटंकी पार्टी से फिर कुछ उम्‍मीदें बँधने लगी हैं, वे छाती पीटने, रोने-बिसूरने के लिए कृपया थोड़ा इंतजार करें।

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