-- कविता कृष्णपल्लवी
आज सभी साथी जमानत पर रिहा हो गये। मज़दूर केजरीवाल को महज उसके चुनावी वायदों की याद दिलाने गये थे, पर उनकी बात सुनने के बजाय उनकी बर्बर पिटाई की गयी। अभी कुछ ही दिनों पहले दिल्ली मेट्रो के मज़दूरों पर भी लाठीचार्ज हुआ था।
केजरीवाल ने सत्ता में आते ही व्यापारियों को राहत दी, कारखानेदारों को पर्यावरण कानूनों की बंदिशों से छूट देकर भारी फायदा पहुँचाया, लेकिन जिस सत्तर फीसदी मेहनतकश आबादी से ढेरों लुभावने वायदे करके वोटों की जबर्दस्त फसल काटी थी, उसके सभी मुद्दों पर एकदम चुप्पी साध गया। मज़दूर इसबार सचिवालय महज उन्हीं वायदों की याददिहानी के लिए गये थे। वे सभी वायदों को तुरत पूरा करने की बात भी नहीं कर रहे थे। उनका बस यही कहना था कि सरकार बस एक समयबद्ध कार्यक्रम बता दे कि वह उन वायदों को कबतक किस क्रम से पूरा करेगी। केजरीवाल के लिए यह बेहद गुस्से और बदहवासी की बात थी कि मज़दूर यह हिमाकत करें। 'फोर्ड फाउण्डेशन' के पैसे से दशकों एन.जी.ओ. सुधारवाद की राजनीति करने वाला यह शातिर जोकर बुर्जुआ संसदीय राजनीति में उतरते ही समझ गया कि बुर्जुआ संसदीय जनवाद में सरकार चलाने का अपना व्याकरण होता है और उसने ''सुथराजी'' का चोला उतारकर 'पूँजीपतियों की मैनेजिंग कमेटी' के कारकून वाला चेहरा दिखा ही दिया।
लेकिन केजरीवॉल्व और केजू भक्तो, तुमलोग मेहनतकशों की ताकत को बहुत कम करके आँक रहे हो! कितनी बार लाठियाँ चलवाओगे, कितने मुकदमें करोगे, कितनी जेलें भरोगे? अभी तो यह शुरुआत है। इतने में ही, न सिर्फ मज़दूर बल्कि दिल्ली के आम मध्यवर्ग के लोगों के एक बड़े हिस्से के सामने भी तुम्हारी ''गाँधीगीरी'' का चोला उतर गया। हम तुम्हारी असलियत की पोलपट्टी पूरी दिल्ली की मज़दूर बस्तियों में खोलेंगे और मध्यवर्गीय मुहल्लों तक भी जायेंगे। हम तुम्हारे एक-एक विधायक को घेरेंगे। हम फिर सचिवालय तक आयेंगे। पाँच साल का समय है। अभी तो महज ऊपरी चोला सरक रहा है। फिर कमीज-पैण्ट की बारी आयेगी और फिर अन्तर्वस्त्रों की। पाँच साल बीतते-बीतते तुम उसी बुर्जुंआ हम्माम में होगे अलफ नंगे, सभी पुराने बेशर्म नंगों के साथ बैठे हुए। हम तुम्हें भरोसा दिलाते हैं कि तुम्हारी पार्टी के पूरे देश में फैलने के पहले हम दिल्ली में ही साबित करेंगे कि पूँजी की राजनीतिक मण्डी में नये लोक लुभावन नारों का माल सजाये एक नये खोमचे वाले से अधिक तुम कुछ भी नहीं हो। तुम भी पुराने नागनाथों-साँपनाथों के ही नये बिरादर हो। तुम पूँजीवादी व्यवस्था के 'सेफ्टीवाल्व' ही हो(केजरीवॉल्व), वह भी डुप्लीकेट, बिना आई.एस.आई. मार्क वाला।
तुम्हारी लाठियों ने, स्त्री साथियों के साथ तुम्हारे खाकी वर्दीधारी चौकीदारों की बदसलूकियों ने, तुम्हारी शातिराना चुप्पियों ने हमारे संकल्पों को और अधिक मजबूत बनाया है। अपने जख्म भरने से पहले ही हमारे साथी मज़दूर बस्तियों में जाकर तुम्हारे छल-छद्म को उजागर करने का काम शुरू कर देंगे।
रही बात 'सॉलिड' केजू भक्तों की, यानी बौद्धिक केजू भक्तों की; तो यह एक छिपकली जैसी नयी प्रजाति है, जो मोदी भक्तों की प्रजाति से साठ प्रतिशत तक मेल खाती है। जो थोड़े बहुत विभ्रमग्रस्त भलेमानस केजू-समर्थक हैं, वे तो अभी से मायूस होने लगे हैं।
सही लिखा आपने आज कल हर नेता पूंजीपत्यिों को ही मालामाल करने म लगा ह चाहे वो . बी.जे.पी. हो या आप बी.जी.पी तो इस मामले में सबसे अब्बल है किसानो क पेट पर लात मारकर पूंजीपतियों को जमीन देना च रही ह . शर्म आनी चाहिए !
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