Monday, March 30, 2015

जो ज़‍ि‍न्‍दा दफ़्न हो जाते हैं अपने सपनों, उम्‍मीदों और अरमानों के साथ!




--कविता कृष्‍णपल्‍लवी

यूँ तो यह व्‍यवस्‍था रोज़ ही उनकी उम्‍मीदों और सपनों को दफ़्न करने के लिए क़ब्रें खोदती रही हैं, पर अक्‍सर ऐसा भी होता है कि इन लोगों को कभी-कभी सीधे ज़ि‍न्‍दा दफ़्न कर दिया जाता है।
कल फिर एक ऐसी ही घटना घटी जब सुबोध नामक बाइस वर्षीय मज़दूर दक्षिण दिल्‍ली को कोटला मुबारकपुर इलाके में, आई.एन.ए. मेट्रो स्‍टशन के पास तीन मंजिले पार्किंग के निर्माण के लिए सौ फुट गहरा गड्ढा खोदते समय, मिट्टी गिरने से ज़ि‍न्‍दा ही दफ़्न हो गया। तीन अन्‍य मज़दूर भी घायल हो गये। सुबोध भागलपुर (बिहार) से आया एक प्रवासी मज़दूर था। दूसरे मज़दूरों की ही तरह वह निर्माण स्‍थल के पास ही अपनी पत्‍नी और दो बच्‍चों के साथ टीन-टप्‍पर डालकर रहता था। निर्माणाधीन प्रोजेक्‍ट का ठेका 'नेशनल बिल्डिंग कारपोरेशन कं. लि.' ने 'इन्‍दु प्रोजेक्‍टस' नाम की कम्‍पनी को दिया था।
सुबोध के शव को लेकर मज़दूरों ने हर्जाने और कम्‍पनी पर लापरवाही बरतने के लिए मामला दर्ज करने की माँग को लेकर जब उग्र प्रदर्शन किया, तब जाकर पुलिस ने मामला दर्ज़ किया और एस.डी.एम. ने तीन लाख रुपये मुआवजा़ देने का आश्‍वासन दिया। क़ानूनन दुर्घटना के लिए कम्‍पनी से जो मुआवज़ा मिलना चाहिए, उसके बारे में ठेकेदार कम्‍पनी और मुख्‍य नियोक्‍ता चुप्‍पी साधे हुए हैं।आम तौर पर होता यह है कि कुछ दिनों बाद ठेकेदार मृतक के परिवार को थोड़ा-बहुत दे दिलाकर मुँह बंद कर देते हैं। मुआवज़े का क़ानून ठेका मज़दूरों के लिए लागू करा पाने के क़ानूनी रास्‍ते में इतने झोल हैं कि मृतक मज़दूर का परिवार मजबूर होता है।
पूरे देश में इसी तरह मिट्टी में दबकर या सीवर में फँसकर मरने के दर्जनों घटनायें हाल के कुछ महीनों के दौरान सुनने में आयीं। आम तौर पर ठेकेदार ऐसी खुदायी कराते समय सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं करते और ज्‍यादा मुनाफा कूटने के लिए ऐसा काम मशीनों के बजाय मैनुअली कराया जाता है।
सवाल सिर्फ मुआवज़े का ही नहीं है। अहम मुद्दा यह है कि श्रम विभाग सुरक्षा इंतज़ामों को लागू करवाने में, बार-बार की दुर्घटनाओं के बावजूद ढील बरतता है।
ठेकाकरण की अंधाधुध लहर ने आज बहुसंख्‍य मज़दूर आबादी को ने केवल अपनी हड्डियाँ निचुड़वाने के लिए बाध्‍य कर दिया है, बल्कि क़ानूनी तौर पर एकदम अरक्षित बना दिया है। अब मोदी सरकार के प्रस्‍तावित श्रम सुधार रही-सही कोर-कसर भी पूरी कर देंगे। सफ़ेदपोश कुलीन मज़दूरों तक सिमटी बुर्जुआ और संशोधनवादी पार्टियों की पुछल्‍ली ट्रेड यूनियनों के अर्थवादी दलालों को बहुसंख्‍यक असंगठित मज़दूर आबादी से कोई लेना-देना नहीं है। इन असंगठित मज़दूरों को पेशागत और इलाकाई आधारों पर संगठित करके ही आज भारत के मज़दूर आन्‍दोलन को एक बार फिर क्रांतिकारी नवोन्‍मेष की दिशा में आगे बढ़ाया जा सकता है।

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