आज की दुनिया में समूची संस्कृति और समस्त कला-साहित्य निश्चित वर्गों के ही होते हैं, तथा उन्हें निश्चित राजनीतिक कार्यदिशाओं के अनुरूप ढाला जाता है। वास्तव में 'कला कला के लिए' के सिद्धान्त को मानने वाली कला, वर्गों से परे रहने वाली कला, तथा राजनीति से अलग रहने अथवा स्वतंत्र रहने वाली कला नाम की कोई चीज नहीं होती। सर्वहारा वर्ग का कला-साहित्य समूचे सर्वहारा क्रांतिकारी कार्य का एक अंग है; लेनिन के शब्दों में, यह समूची क्रांतिकारी मशीन के दांतें और पेंच के समान है।
-- माओ त्से-तुंग
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