Thursday, September 04, 2014

वाणी का भावावेग




वाणी का भावावेग (एक)

मार्सेला बर्फीले उत्‍तर के सफर पर थी। ओस्‍लो में एक रात, वह एक औरत से मिली जो गाती थी और कहानियाँ सुनाती थी। गीतों के बीच वह काग़ज़ की पर्चियों पर निगाहें दौड़ाती सूत कातती रहती थी जैसे ताश के बिछे हुए पत्‍तों को देखकर कोई भाग्‍य बाँचता हो।
ओस्‍लो की इस औरत के पास एक विशालकाय पोशाक थी जिसमें चारो ओर जेबें टँकी हुई थीं। वह अपनी जेबों से एक-एक करके काग़ज़ की पुर्जियाँ निकालती थी, हर पुर्जी के साथ सुनाने को एक कथा होती थी, लोगों द्वारा आजमायी गयी और लोगों की सच्‍ची कहानियाँ जो जादू-टोने के जरिए जिन्‍दगी में वापस आना चाहते थे। और इसलिए वह मर चुके और भुला दिये गये लोगों को उठाती थी, और उसकी पोशाक की गहराइयों से मनुष्‍य नाम के उस पशु के प्‍यार और यात्रा-कथाओं के महाकाव्‍य प्रस्‍फुटित होते जाते थे, जो जीता चला जाता है और बोलता चला जाता है।

वाणी का भावावेग (दो)

यह स्‍त्री या पुरुष अनेक लोगों से गर्भित है। लोग उसके रोमछिद्रों से बाहर आ रहे हैं। मिट्टी की इन्‍हीं आकृतियों से, न्‍यू मेक्सिको के प्‍यूएब्‍लो इण्डियन लोग कथावाचक को चित्रित करते हैं: एक ऐसा व्‍यक्ति जो सामूहिक स्‍मृति से खुद को जोड़ लेता है, जो आम लोगों से सुंदरता से खिलकर भर उठता है।

-- एदुआर्दो ग़ालिआनो

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