Sunday, August 03, 2014




सब चुप, साहित्यिक चुप और कविजन निर्वाक्
चिंतक, शिल्‍पकार, नर्तक चुप हैं;
उनके ख़याल से यह सब गप है
मात्र किंवदंती।
रक्‍तपायी वर्ग से नाभिनालबद्ध ये सब लोग
नपुंसक भोग-शिरा-जालों में उलझे,
प्रश्‍न की उथली-सी पहचान
राह से अनजान
वाक् रुदंती।
चढ़ गया उर पर कहीं कोई निर्दयी,
कहीं आग लग गयी, कहीं गोली चल गयी।

-- मुक्तिबोध
('अँधेरे में')


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