Saturday, July 19, 2014

जड़ समाज की मृतात्‍माएँ ऐसी ही अमानवीय और संवेदनशून्‍य होती हैं!



-- कविता कृष्‍णपल्‍लवी

जिस ठहरे हुए समाज में पूँजीवाद का प्रवेश मंथर गति से हुआ हो, जहाँ आधुनिकता जनवादी मूल्‍यों से रिक्‍त निरंकुश-निर्बाध उपभोक्‍तावाद का घटाटोप हो, जहाँ सामाजिक-तानेबाने में जनवाद का घोर अभाव हो, जहाँ मध्‍यवर्ग मेहनतकश आबादी और श्रम की संस्‍कृति से इस कदर नफरत करता हो, जहाँ कूपमण्‍डूक जनद्रोही शिक्षित मध्‍य वर्ग की भारी आबादी धार्मिक कट्टरता और ग़रीबों को रौंदते विकास के खूनी रथ के आगे-पीछे उन्‍मत्‍त होकर दौड़ते हुए गुजरात के हत्‍यारे को सिर पर बैठाने के लिए तैयार हो, जहाँ वामपंथी, जनवादी और सेक्‍युलर कहलाने वाले आरामतलब बुद्धिजीवी कायर होने के साथ ही इतने पद-पीठ-पुरस्‍कार-लोललुप हो कि सत्‍ताधारियों के पेशाब करने को भी अमृत वर्षा बताते हों, उस समाज में यदि गाजा नरसंहार पर भी रूहों में हरकत न पैदा हुई हो और लाखों तो दूर, हजारों भी सड़कों पर न उतरे हों, तो यह कोई आश्‍चर्य की बात नहीं है।
गाजा नरसंहार के खिलाफ अमेरिका और यूरोप से लेकर अफ्रीका, लाति‍न अमेरिका और एशिया के कई शहरों में 70-80 हजार से लेकर 5-10 हजार लोग तक सड़कों पर उतर पड़े। भारी जनप्रदर्शनों का सिलसिला अभी भी जारी है। भारत में दिल्‍ली में तीन प्रदर्शन हुए, मुम्‍बई, बंगलुरू, हैदराबाद, श्रीनगर, कारगिल, इलाहाबद, लखनऊ, फलोदी आदि जगहों पर कई प्रदर्शन हुए, पर इनमें भाग लेने वालों की संख्‍या कुछ सौ से लेकर कुछेक हज़ार तक ही रही (श्रीनगर और कारगिल में सबसे अधिक लोग जुटे)। दिल्‍ली में ज्‍यादातर वामनामधारी और जनवादी-प्रगतिशील लेखक-बुद्धिजीवी-संस्‍कृतिकर्मी तो घरों से बाहर ही नहीं निकले।
यह मुर्दानगी बताती है कि जागने से पहले भारतीय समाज को अभी बर्बरता के काफी कोड़े अपनी पीठ पर झेलने हैं। मुखर मध्‍यवर्ग की यह संवेदनहीनता बताती है कि अभी लोगों को इस वास्‍तविकता का अहसास कराने में पर्याप्‍त समय लगेगा कि पूँजीवादी वैभव-विलास की दुनिया एक विस्‍फोटासन्‍न ज्‍वालामुखी के दहाने पर बैठी हुई है। यह स्थिति एक बार फिर बताती है कि खाता-पीता मध्‍यवर्ग बौद्धिक समाज जनमुक्ति के स्‍वप्‍नों को तिलांजलि दे चुका है और उत्‍पी‍ड़ि‍त जनों के साथ ऐतिहासिक विश्‍वासघात कर चुका है।
मुख्‍य धारा के इस बौद्धिक समाज से अलग आम गरीब मध्‍यवर्ग और मेहनतकश के घरों से जो नयी युवा आबादी चेतना सम्‍पन्‍न बन रही है, उसी के बीच से नये क्रांतिकारी बौद्धिक जमातें उभरेंगी। आशा और भविष्‍य स्‍वप्‍नों के नये उत्‍सों का संधान वहीं करना होगा।।

1 comment:

  1. आप लिखती अच्छा है -भाषा भाव पर दक्ष पकड़ हैं। लगता है पढता चलूँ समझूँ या न समझूँ :-)

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