Wednesday, June 04, 2014

भविष्‍य के पूर्वसंकेत और रचनाकारों-कलाकारों-बुद्धिजीवियों से एक अपील : कुछ ठोस प्रस्‍ताव


--कविता कृष्‍णपल्‍लवी

जाने-माने लेखक यू.आर.अनंतमूर्ति को 'नमो ब्रिगेड' और शिमोगा की भाजपा इकाई ने पाकिस्‍तान जाने का टिकट भिजवाया है। वे लगातार आतंक के साये में जी रहे हैं। यह तो ''अच्‍छे दिनों'' की मात्र एक शुरुआत है। मोदी सरकार ''विकास'' के नाम पर शान्ति क़ायम करने के लिए मज़दूरों पर जमकर कहर बरपा करेगी, भारी आबादी को उजाड़कर पूँजीपतियों को जल-जंगल-जमीन औने-पौने भावों पर सौंपा जायेगा और दूसरी ओर सड़कों पर फासिस्‍ट गिरोह जमकर उपद्रव-उत्‍पात मचायेंगे और धार्मिक अल्‍पसंख्‍यकों तथा सभी सेक्‍युलर-जनवादी-प्रगतिशील ताकतों को निशाना बनायेंगे।
हमारा प्रस्‍ताव है कि आने वाले दिनों का प्रथम संकेत मिलते ही प्रतिरोध की आवाज़ उठाई जानी चाहिए।
(1) व्‍यापक प्रचार करके, देश के ज्‍यादा से ज्‍यादा लेखकों, कलाकारों, मीडियाकर्मियों, बुद्धिजीवियों द्वारा ऑनलाइन हस्‍ताक्षरित विरोध पत्र नरेन्‍द्र मोदी और राजनाथ सिंह को भेजा जाना चाहिए कि वे भाजपा की शिमोगा इकाई को तत्‍काल भंग करें और 'नमो ब्रिगेड' पर कानूनी प्रतिबंध लगाने के लिए कदम उठायें। इसी आशय का पत्र कर्नाटक सरकार को भी भेजा जाना चाहिए।
 (2) नरेन्‍द्र मोदी के शपथ-ग्रहण के दिन या उसके चन्‍द दिनों के भीतर ज्‍यादा से ज्‍यादा  कवि-लेखक-कलाकार इस घटना के विरोध स्‍वरूप साहित्‍य अकादमी, ललित कला अकादमी आदि सरकारी प्रतिष्‍ठानों से प्राप्‍त अपने सम्‍मान और पुरस्‍कार वापस करने की घोषणा करें, सरकारी शोधवृत्तियों-अध्‍ययन वृत्तियों को छोड़ने की घोषणा करें और साहित्‍य अकादमी के अध्‍यक्ष (विश्‍वनाथ प्रसाद तिवारी को अपने मित्र अनंतमूर्ति के लिए इतना तो करना ही चाहिए) सहित सभी अकादमियों के पदाधिकारी अपना त्‍यागपत्र सरकार को सौंप  दें।
(3) ऐसे मुद्दों पर वामपंथी-गैरवामपंथी का भेदभाव कत्‍तई नहीं होना चाहिए। अत: दिल्‍ली के वरिष्‍ठ लेखकों-कलाकारों-अकादमीशियनों-मीडियाकर्मियों में से कुछ सम्‍मान्‍य वरिष्‍ठ  लोगों को टीम बनाकर पहल लेनी चाहिए और जनवादी अधिकार तथा अभि‍व्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता के प्रश्‍न पर जल्‍दी से जल्‍दी दिल्‍ली में देश भर के कवियों-लेखकों-कलाकारों-मीडियाकर्मियों-अकादमीशियनों का सम्‍मेलन बुलाना चाहिए।
हम ऐसी हर पहल में हिस्‍सा लेंगे, लेकिन हमारे पहल लेने का विशेष प्रतिसाद नहीं मिलेगा। लेकिन दिल्‍ली में यदि जस्टिस राजिन्‍दर सच्‍चर, कुलदीप नैय्यर, ओम थानवी, आनंद स्‍वरूप वर्मा, पंकज बिष्‍ट, मंगलेश डबराल, मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, सिद्धार्थ वरदराजन, अरुंधती राय, पी.साईनाथ, पी.यू.सी.एल. और पी.यू.डी.आर. के लोग, सभी प्रसिद्ध वामपंथी इतिहासकार और अन्‍य वरिष्‍ठ प्राध्‍यापक गण आदि-आदि में से कुछ लोग भी मिलकर पहल  लें तो प्रभावी और सार्थक प्रतिरोध की शुरुआत हो सकती है। ऐसे सभी स्‍थापित लोगों के तमाम उसूली और व्‍यक्तिगत मतभेद हो सकते हैं (वैसे तो अनंतमूर्ति भी वामपंथी नहीं हैं!), पर अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता के अधिकार तथा सेक्‍यु‍लरिज्‍़म और जनवाद के मूल्‍यों की हिफाजत के सवाल पर तो न्‍यूनतम सहमति बनाई ही जानी चाहिए, बनानी ही होगी।
कुछ लोग यह सोच सकते हैं कि यह एक छोटी सी घटना की अतिरेकी प्रतिक्रिया तो नहीं है! हमारा ज़ोर देकर कहना है कि कत्‍तई नहीं। यह आने वाले दिनों का एक पूर्वसंकेत मात्र है। आज की चुप्‍पी और असम्‍पृक्‍तता कल बहुत मँहगी पड़ेगी। हाँ, जो लोग झुकने के आदेश पर रेंगने के लिए तैयार हो जाते हैं, उनकी बात अलग है। वे 'एडजस्‍ट' कर लेंगे। हमें संगठित विरोध की आवाज़ उठानी होगी। बुद्धिजीवियों को तय करना होगा कि वे किस ओर हैं! अभिव्‍यक्ति के ख़तरे उठाने ही होंगे।

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