--कविता कृष्णपल्लवी
16वीं लोकसभा चुनावों में मोदी के नेतृत्व वाले भाजपा गठबंधन की जबर्दस्त जीत अप्रत्याशित कत्तई नहीं है।
(1) पूँजीवाद का दायरा आज केवल नवउदारवादी नीतियों पर अमल की ही इजाजत देता है। ये नवउदारवादी नीतियाँ एक ज्यादा से ज्यादा निरंकुश सर्वसत्तावादी शासन की माँग करती है, इसलिए भारतीय पूँजीपति वर्ग का पहला विकल्प भाजपा गठबंधन ही था।
(2) इसीलिए अम्बानी, अडानी, टाटा, बिड़ला सहित सभी पूँजीपति घरानों ने हर तरह से मोदी के प्रचार अभियान का साथ दिया। पूँजीपतियों के स्वामित्व वाले सभी समाचार चैनलों ने मोदी के पक्ष में जमकर हवा बनायी। बुर्जुआ संसदीय प्रणाली में अंततोगत्वा पूँजी ही निर्णायक सिद्ध होती है। यदि शासक वर्ग लगभग आम सहमति से मोदी के पक्ष में था, तो नतीजे़ ऐसे ही आने थे।
(3) यह अनायास नहीं है कि नवउदारवाद के इस दौर में पूरी दुनिया में फासीवादी उभार का एक नया दौर देखने को मिल रहा है और कई जगह ऐसी ताकतें सत्ता में आ चुकी हैं। जहाँ वे सत्ता में नहीं हैं, वहाँ भी बुर्जुआ जनवाद और फासीवाद के बीच की विभाजक रेखा धूमिल सी पड़ती जा रही है और सड़कों पर फासीवादी उत्पात बढ़ता जा रहा है।
(4) हमने पहले भी लिखा था कि मोदी सत्ता में आये या न आये, भारत में सत्ता का निरंकुश दमनकारी होते जाना लाजिमी है। दूसरी बात, सड़कों पर फासीवादी उत्पात बढ़ता जायेगा। फासीवाद विरोधी संघर्ष का लक्ष्य केवल मोदी को सत्ता में आने से रोकना नहीं हो सकता। फासीवाद विरोधी संघर्ष सड़कों पर होगा और मज़दूर वर्ग को क्रांतिकारी ढंग से संगठित किये बिना, संसद में और चुनावों के जरिए फासीवाद को शिकस्त नहीं दी जा सकती। फासीवाद विरोधी संघर्ष को पूँजीवाद विरोधी संघर्ष से काटकर नहीं देखा जा सकता। पूँजीवाद के बिना फासीवाद की बात नहीं की जा सकती। फासीवाद विरोधी संघर्ष एक लम्बा संघर्ष है और उसी दृष्टि से इसकी तैयारी होनी चाहिए।
(5) पूँजीवादी संकट का यदि समाजवादी समाधान प्रस्तुत नहीं हो पाता तो फासीवादी समाधान सामने आता है -- यह पुराना मार्क्सवादी सूत्रीकरण है। फ।सीवाद हर समस्या के तुरत-फुरत समाधान के लोकरंजक नारों के साथ तमाम मध्यवर्गीय जमातों, छोटे कारोबारियों, सफेदपोश मज़दूरों, छोट उद्यमियों और मालिक किसानों को लुभाता है। उत्पादन प्रक्रिया से बाहर कर दी गयी विघटित वर्ग चेतना वाली विमानवीकृत मज़दूर आबादी भी फासीवाद के झण्डे तले आ जाती है। जब कोई क्रांतिकारी सर्वहारा नेतृत्व उसकी लोकरंजकता का पर्दाफाश करके सही विकल्प प्रस्तुत करने के लिए तैयार नहीं होती तो फासीवादियों का काम और आसान हो जाता है।
(6) भाजपा गठबंधन के शासन का सबसे अधिक कहर मज़दूर वर्ग पर बरपा होगा। उदारीकरण-निजीकरण की नीतियों को खूनी खंजर हाथ में थाम्हकर लागू किया जायेगा। मज़दूरों की हड्डियों तक को निचोडकर अधिशेष का अम्बार संचित किया जायेगा। धार्मिक अल्पसंख्यकों को एक 'आतंक राज' के मातहत दोयम दर्जे के नागरिक के रूप में जीना होगा। दलितों का उत्पीड़न अपने चरम पर होगा। साम्प्रदायिक और जातिगत आधार पर मेहनतकश जनता को बाँटकर उसकी वर्गीय एकजुटता को ज्यादा से ज्यादा विघटित करने की कोशिशें की जायेंगी। देश के भीतर के दुश्मन से ध्यान भटकाने के लिए उग्र अंधराष्ट्रवादी नारे दिये जायेंगे और सीमाओं पर तनाव पैदा किये जायेंगे। देशी-विदेशी पूँजीपतियों को और बिल्डर लॉबी को कौडि़यों के मोल ज़मीनें दी जायेंगी, किसानों और आदिवासियों को जबरिया बेदखल किया जायेगा और प्रतिरोध की हर कोशिश को लोहे के हाथों से कुचल देने की कोशिश की जायेगी। जनवादी अधिकार आंदोलन को विशेष तौर पर हमले का निशाना बनाया जायेगा और जनवादी अधिकार कर्मियों को ''देशद्रोह'' जैसे अभियोग लगाकर जेलों में ठूँसा जायेगा।
(7) फासीवादी उभार के लिए उन संशोधनवादियों, संसदमार्गी नकली कम्युनिस्टों और सामाजिक जनवादियों को इतिहास कभी नहीं माफ कर सकता, जिन्होंने मात्र आर्थिक संघर्षों और संसदीय विभ्रमों में उलझाकर मज़दूर वर्ग की वर्गचेतना को कुण्ठित करने का काम किया। ये संशोधनवादी फासीवाद विरोधी संघर्ष को मात्र चुनावी हार जीत के रूप में ही प्रस्तुत करते रहे, या फिर सड़कों पर मात्र कुछ प्रतीकात्मक विरोध-प्रदर्शनों तक सीमित रहे। अतीत में भी इनके सामाजिक जनवादी, काउत्स्कीपंथी पूर्वजों ने यही महापाप किया था। दरअसल ये संशोधनवादी आज फासीवाद का जुझारू और कारगर विरोध कर ही नहीं सकते, क्योंकि ये ''मानवीय चेहरे'' वाले नवउदारवाद का और कीन्सियाई नुस्खों वाले ''कल्याणकारी राज्य'' का विकल्प ही सुझाते हैं। आज पूँजीवादी ढाँचे में चूँकि इस विकल्प की संभावनाएँ बहुत कम हो गयी हैं, इसलिए पूँजीवाद के लिए भी ये संशोधनवादी भी काफी हद तक अप्रासंगिक हो गये हैं। बस इनकी एक ही भूमिका रह गयी है कि ये मज़दूर वर्ग को अर्थवाद और संसदवाद के दायरे में कैद रखकर उसकी वर्गचेतना को कुण्ठित करते रहें और वह काम ये करते रहेंगे। जब फासीवादी आतंक चरम पर होगा तो ये संशोधनवादी चुप्पी साधकर बैठ जायेंगे और काग़जी बात बहादुरी करने वाले छद्म वामपंथी बुद्धिजीवी या तो घरों में दुबक जायेंगे या माफीनामा लिखने बैठ जायेंगे।
(8) निश्चय ही फासीवादी माहौल में क्रांतिकारी शक्तियों के प्रचार एवं संगठन के कामों का बुर्जुआ जनवादी स्पेस सिकुड़ जायेगा, लेकिन इसका दूसरा पक्ष यह होगा कि नवउदारवादी नीतियों का बेरोकटोक और तेज अमल तथा हर प्रतिरोध को कुचलने की कोशिशों के चलते पूँजीवादी संरचना के सभी अन्तरविरोध उग्र से उग्रतर होते चले जायेंगे। मज़दूर वर्ग और समूची मेहनतकश जनता रीढ़विहीन गुलामों की तरह सबकुछ झेलती नहीं रहेगी। अंततोगत्वा वह सड़कों पर उतरेगी। व्यापक मज़दूर उभारों की परिस्थितियाँ तैयार होंगी। यदि इन्हें नेतृत्व देने वाली क्रांतिकारी शक्तियाँ तैयार होंगी तो क्रांतिकारी संकट की उन सम्भावित परिस्थितियों का बेहतर से बेहतर इस्तेमाल कर सकेंगी। भारत के स्तर पर और विश्व स्तर पर बुर्जुआ जनवाद का क्षरण और नव फासीवादी ताकतों का उभार दूरगामी तौर पर नयी क्रांतिकारी सम्भावनाओं के विस्फोट की दिशा में भी संकेत कर रहा है।
(9) लेकिन, फिलहाल, अहम बात यह है कि आने वाला समय मेहनतकश जनता और क्रांतिकारी शक्तियों के लिए कठिन और चुनौतीपूर्ण है। हमें राज्यसत्ता के दमन का ही नहीं, सड़कों पर फासीवादी गुण्डा गिरोहों का भी सामना करना पड़ेगा। रास्ता सिर्फ एक है। हमें तृणमूल स्तर पर मज़दूरों के बीच अपना आधार मजबूत बनाना होगा, यूनियन के अतिरिक्त उनके तरह-तरह के जनसंगठन, मंच, जुझारू स्वयंसेवक दस्ते, चौकसी दस्ते आदि तैयार करने होंगे। जो वाम जनवादी वास्तव में जूझने का जज़्बा और माद्दा रखते हैं, उन्हें छोटे-छोटे मतभेद भुलाकर एकजुट हो जाना चाहिए और काग़जी शेरों को कागज-कलम लेकर माफीनामा लिखने बैठ जाना चाहिए।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (17-05-2014) को ""आ गई अच्छे दिन लाने वाली एक अच्छी सरकार" (चर्चा मंच-1614) पर भी होगी!
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जनतऩ्त्र ने अपनी ताकत का आभास करा दिया।
दशकों से अपनी गहरी जड़ें जमाए हुए
कांग्रेस पार्टी को धूल चटा दी और
भा.ज.पा. के नरेन्द्र मोदी को ताज पहना दिया।
नयी सरकार का स्वागत और अभिनन्दन।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
कल 18/05/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
बहुत सुंदर विश्लेषण ।
ReplyDeleteसम सामयिक राजनीती पर बढ़िया चिन्तनशील प्रस्तुति
ReplyDeleteModi ne Aisa to nahee kahatha.
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