Tuesday, April 29, 2014

भिवाड़ी में मज़दूर आक्रोश का विस्‍फोट और पुलिस दमन : राजधानी क्षेत्र के औद्योगिक इलाकों में सतह के नीचे आग धधक रही है!

--कविता कृष्‍णपल्‍लवी


पिछले 26 अप्रैल की शाम को हरियाणा के मानेसर और धारूहेड़ा औद्योगिक क्षेत्र से सटे भिवाड़ी (जिला-अलवर) के पथरेड़ी-चौपानकी औद्यो‍गिक क्षेत्र स्थित ऑटो पार्ट्स बनाने वाली कम्‍पनी 'श्रीराम पिस्‍टन ऐण्‍ड रिंग्‍स' के हड़ताली मज़दूरों पर 2000 पुलिस कर्मियों ने योजनाबद्ध ढंग से धावा बोलकर बर्बर लाठीचार्ज किया, दस चक्र गोलियाँ चलाईं और तीस आँसू गैस के गोले फेंके।
पुलिस के साथ ही प्रबंधन के दो सौ बाउंसरो ने भी चाकुओं, रॉडों और लाठियों से मजदूरों  पर हमला बोल दिया। इस हमले में घायल 79 मज़दूर अस्‍पताल में भर्ती हैं, जिनमें से चार की स्‍थिति गम्‍भीर है। इस पूरी घटना के बाद 26 मज़दूरों को गिरफ्तार करके उनके ऊपर हत्‍या  के प्रयास का मुकदमा ठोंक दिया गया, जबकि प्रबंधन और उसके बाउंसरों के विरुद्ध प्रशासन ने कोई भी कानूनी कार्रवाई नहीं की।
श्रीराम पिस्‍टन फैक्‍ट्री में श्रमिक अशांति की स्थिति पिछले कई महीनों से बनी हुई है। यहाँ गुड़गाँव-मानेसर-बावल-खुशखेड़ा-भिवाड़ी औद्योगिक पट्टी की 1000 से भी अधिक आटोमोबील और आटो पार्ट्स बनाने वाली छोटी-बड़ी कम्‍पनियों की ही तरह ज्‍यादा से ज्‍यादा काम ठेका, कैजुअल और अप्रेण्टिस मज़दूरों से कराया जाता है। इन सभी कारखानों में मज़दूरों को निहायत दमनकारी परि‍स्‍थितियों में काम लिया जाता है और उनके क़ानूनी अधिकारों  का भी वास्‍तव में कोई मतलब नहीं होता। प्रबंधन बाउंसरों की मदद से खुली गुण्‍डागर्दी करता है और पुलिसिया तंत्र भी वफ़ादार कुत्‍तों की तरह उनकी सेवा में सन्‍नद्ध रहता है। ज्‍यादातर कारखानों में यूनियनें नहीं हैं या मालिकों के दलालों की कुछ यूनियनें हैं। यूनियन बनाने की हर कोशिश को प्रबंधन सीधी बग़ावत मानता है और इस पूरी पट्टी में हर ऐसी कोशिश को प्रशासन की खुली मदद से बर्बरतापूर्वक कुचल देने का इतिहास एक  दशक से भी अधिक पुराना रहा है। हीरो होण्‍डा, मारुति सुजुकी और ओरियेण्‍ट क्राफ्ट के प्रसिद्ध उग्र मज़दूर संघर्ष इन्‍हीं दमनकारी परिस्थितियों के परिणाम थे। इनके अतिरिक्‍त छोटी-मोटी दर्जनों हड़तालें और आंदोलन सिर्फ पिछले दस वर्षों के दौरान ही इस इलाके के आटोमो‍बील सेक्‍टर के कई कारखानों में हो चुके हैं, जिनका पूँजीपतियों के अखबारों में 'टोटल ब्‍लैकआउट' किया जाता रहा है। श्रीराम पिस्‍टन फैक्‍ट्री की घटना भी राष्‍ट्रीय अखबारों में सुर्खियाँ बनना तो दूर, कोने-अँतरे में भी स्‍थान नहीं पा सकी। इसलिए हमारा यह दायित्‍व बनता है कि इस मज़दूर आंदोलन और इसके बर्बर दमन की ज़मीनी हक़ीकत को ज्‍यादा से ज्‍यादा मज़दूरों और आम नागरिकों तक पहुँचाने की कोशिश करें।
श्रीराम पिस्‍टन में भी प्रबंधन के उत्‍पीड़न से तंग आ चुके मज़दूरों ने जब यूनियन बनाने की कोशिश शुरू की तो प्रबंधन ने तरह-तरह से धौंस-धमकी और भयादोहन का सिलसिला शुरू कर दिया। तरह-तरह के फर्जी आरोप लगाकर 22 मज़दूरों को निलंबित कर दिया। लेकिन मज़दूर झुके नहीं। पिछले एक महीने से निलंबित मज़दूरों की बहाली और यूनियन पंजीकरण के लिए फैक्‍ट्री के कुल दो हजार मज़दूर आंदोलन चला रहे थे। पिछले दिनों, महीने में दूसरी बार, सभी मज़दूरों ने काम बंद कर दिया और 11 दिनों से जारी हड़ताल के दौरान प्‍लांट में ही जमकर बैठ गये। फिर प्रबंधन तिजारा न्‍यायिक मजिस्‍ट्रेट से फैक्‍ट्री परिसर बलात् खाली करने का आदेश लेकर आया और फिर आतंक फैलाकर सबक सिखाने की नीयत से पुलिस और बाउंसरों ने मज़दूरों पर एकदम से धावा बोल दिया। 79 साथियों के घायल होने के बावजूद निहत्‍थे मज़दूरों ने भरपूर प्रतिरोध किया। उग्र आक्रोश में उन्‍होंने पुलिस और प्रबंधन की कई गा‍ड़ि‍यों में आग भी लगा दी। बर्बर हमले के विरोध में उपजे इस आक्रोश के विस्‍फोट को उससमय रोकना भी संभव नहीं था। प्‍लाण्‍ट के बाहर, प्रबंधन की तमाम कोशिशों के बावजूद मज़दूरों का धरना अभी भी जारी है।
श्रीराम पिस्‍टन फैक्‍ट्री की यह घटना न सिर्फ हीरो होण्‍डा, मारुति सुजुकी और ओरिएण्‍ट क्राफ्ट के मज़दूर संघर्षों की अगली कड़ी है, बल्कि पूरे गुड़गाँव-मानेसर-धारूहेड़ा-बावल-भिवाड़ी की विशाल औद्योगिक पट्टी में मज़दूर आबादी के भीतर, और विशेषकर आटोमोबील सेक्‍टर के मज़दूरों के भीतर सुलग रहे गहरे असंतोष का एक विस्‍फोट मात्र है। यह आग तो सतह के नीचे पूरे राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र के औद्योगिक इलाकों में धधक रही है, जिसमें दिल्‍ली के भीतर के औद्योगिक क्षेत्रों के अतिरिक्‍त नोएडा, ग्रेटर नोएडा, साहिबाबाद, फरीदाबाद और सोनीपत के औद्योगिक क्षेत्र भी आते हैं। राजधानी के महामहिमों के नन्‍दन कानन के चारो ओर आक्रोश का एक वलयाकार दावानल भड़क उठने की स्थिति में है।
सबसे महत्‍वपूर्ण बात यह है कि यहाँ-वहाँ स्‍वयंस्‍फूर्त ढंग से भड़क उठने वाले मज़दूर संघर्षों के विस्‍फोट यदि कुछ व्‍यापक भी हो जायें, तो भी नवउदारवाद के इस दौर में सत्‍ता उन्‍हें हर कीमत पर कुचलने के लिए तैयार बैठी है। इन संघर्षों को आनन-फानन में पहुँचकर, समर्थन देकर जो संगठन स्‍वत:स्‍फूर्तता की पूजा मात्र करके कुछ लाभ उठाने की कोशिश करते हैं, वे वस्‍तुगत तौर पर, अंतत:, मज़दूर आंदोलन को नुकसान ही पहुँचाते हैं। सबसे पहले, ज़रूरी यह है कि एक सेक्‍टर विशेष के सभी कारखानों के मज़दूरों (जैसे समूचे आटोमोबील सेक्‍टर के मज़दूर) को एक साथ संगठित करने की कोशिश की जाये ताकि वे एक साथ अपनी माँगें उठायें और यदि किसी एक कारखाने में मालिक उत्‍पीड़न करें या कोई आंदोलन हो, तो एक साथ पूरे सेक्‍टर के सभी कारखानों को ठप्‍प कर देने की स्थिति हो। दूसरे, मज़दूरों की 'इण्‍टर-सेक्‍टोरल यूनिटी' बनाने की कोशिश शुरू कर देनी होगी और उन्‍हें इलाकाई पैमाने पर संगठित करना होगा। इसका आज एक वस्‍तुगत आधार है, क्‍योंकि सभी सेक्‍टरों में मज़दूरों की बहुसंख्‍यक आबादी असंगठित है और उनकी ज्‍यादातर माँगें एक समान हैं। बेशक़ यह काम लम्‍बा होगा। इसके लिए मज़दूरों के बीच राजनीतिक प्रचार एवं 'एजिटेशन' की लम्‍बी एवं सघन कार्रवाई चलानी होगी। इस काम में मालिकों और प्रशासन के अतिरिक्‍त चुनावी पार्टियों और संशोधनवादियों की दुकानदारी के रूप में चलने वाली यूनियनों के नौकरशाह और दल्‍ले भी काफी अड़चनें पैदा करेंगे। लेकिन आज की परिस्थितियों में, मज़दूर संघर्ष को एकमात्र  इसी रणनीति के द्वारा आगे बढ़ाया जा सकता है इसलिए हमें इसी दिशा में अपनी पूरी ताक़त लगानी चाहिए।

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