जैसा भगतसिंह ने दशकों पहले कहा था, पूँजीवादी समाज एक ज्वालामुखी के दहाने पर बैठा है। भूगर्भ की हलचलों का विलासरत शासकों और विमर्शरत बौद्धिकों को बहुत कम अहसास है। यह ज्वालामुखी फटेगा और दहकता लावा ऐश्वर्य-द्वीपों को धरती के गर्भ में दफ्न करके नयी मानव-सभ्यता की पारिस्थितिकी का सृजन करेगा। भविष्य की इस पुकार को क्या आप सुन पा रहे हैं?
शोलों के पैकरों से लिपटने की देर हैआतिशफिशां पहाड़ के फटने की देर है।
(जोश मलीहाबादी)
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