Thursday, March 20, 2014

एक विस्‍मृत गौरवशाली विरासत


फासीवाद के विरुद्ध 1920 और 1930 के दशक में पूरे यूरोप में जिन लोगों ने सर्वाधिक जुझारू ढंग से जनता को लामबंद किया था और फासिस्‍टों से सड़कों पर लोहा लिया था,वे कम्‍युनिस्‍ट ही थे। 1934 से 1939 के बीच ब्रिटेन की कम्‍युनिस्‍ट पार्टी ने जो फासीवाद-विरोधी मुहिम चलाई थी, उसका एक गौरवशाली इतिहास रहा है, जो आज बहुतेरे लोग नहीं जानते। 'केबल स्‍ट्रीट की लड़ाई'(4अक्‍टूबर,1936) ऐसी ही एक ऐतिहासिक घटना थी। उस दिन 40,000 सदस्‍यों वाली ओसवाल्‍ड मोस्‍ले की 'ब्रि‍टिश यूनियन ऑफ फासिस्‍ट्स' लंदन के पूर्वी छोर से केबल स्‍ट्रीट और गार्डिनर्स कॉर्नर्स होते हुए (यह इलाका यहूदी बहुल था) एक मार्च निकाल रही थी। कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के सदस्‍यों की संख्‍या उस समय मात्र 11,500 थी, पर उन्‍होंने आनन-फानन में एक लाख लोगों का लामबंद करके फासिस्‍ट मार्च के रास्‍ते को ब्‍लॉक कर दिया और बी.यू.एफ. के यहूदी विरोधी फासिस्‍ट गुण्‍डों को खदेड़ दिया। ये तस्‍वीरें 'केबल स्‍ट्रीट की लड़ाई' की ही हैं। फिल पिरैटिन ने अपनी पुस्‍तक 'अवर फ्लैग स्‍टेज़ रेड' (1948) में इस घटना का विस्‍तृत विवरण दिया है। उस समय कम्‍युनिस्‍ट पार्टी की ताकत संसदमार्गी वाम, सामाजिक जनवादियों और त्रात्‍स्‍कीवादियों (लेबर पार्टी और सोशलिस्‍ट वर्कर्स पार्टी आदि) से कम थी, पर जुझारू फासीवाद-विरोधी संघर्ष में अग्रणी भूमिका कम्‍युनिस्‍टों की ही थी। कम्‍युनिस्‍टों की 'पॉपुलर फ्रण्‍ट' की रणनीति को सुधारवादी बताने वाले त्रात्‍स्‍कीपंथी ब्रिटेन में अच्‍छी-खासी संख्‍या में थे, पर फासिस्‍टों के विरुद्ध सड़कों पर मोर्चा लेने के बजाय वे माँदों में दुबके रहे।
भारत में भी ऐसा नहीं लगता कि संसदीय वाम हिन्‍दुत्‍ववादी फासिस्‍टों से सड़क पर मोर्चा लेने के लिए तैयार है। ये संसद में ही 'तीसरा मोर्चा' वगैरह बनाकर गत्‍ते की तलवार भाँजते रहेंगे। याद करें, 1980 के दशक में पंजाब में खालिस्‍तानियों से मोर्चा कम्‍युनिस्‍ट क्रान्तिकारियों ने ही लिया था। भविष्‍य में हिन्‍दुत्‍ववादी फासिस्‍टों को सड़कों पर मुँहतोड़ जवाब देने की ज़ि‍म्‍मेदारी भी उन्‍हीं के कंधो पर होगी।



लंदन की सड़कों पर फासिस्‍ट गुण्‍डों से टक्‍कर लेते कम्‍युनिस्‍ट(1936)


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