Tuesday, March 18, 2014

जनता के बीच काम करने वाले साथियों से कुछ बातें ...


--कविता कृष्‍णपल्‍लवी

* जब बहुत सारे लोग स्‍वयं तो कहीं भी सामाजिक संघर्षों में न हों, पर लगातार आपके और आपके प्रयोगों की खिल्‍ली उड़ाते हों, जब ऐसे बहुत सारे लोग अपनी अलग-अलग राजनीतिक अ‍वस्थितियों और आपसी अन्‍तरविरोधों के बावजूद आपके विरुद्ध एकजुट हों और आपका विरोध ही उनके संयुक्‍त मोर्चे का साझा कार्यक्रम हो, तो समझ लीजिये कि आप मुख्‍यत: सही रास्‍ते पर हैं और आपके विरोधी मौक़ापरस्‍त या पतित तत्‍व हैं।
*जब कोई व्‍यक्ति राजनीतिक संघर्ष में लाइन की जगह व्‍यक्तियों को निशाना बनाये, तो समझ लीजिये वह एक अफवाहबाज़ और कुत्‍सा प्रचारक है।
*किसी राजनीतिक संगठन की ''आलोचना'' के नाम पर कुछ भी कहने वाले व्‍यक्ति का व्‍यक्तिगत ट्रैक-रिकार्ड भी अवश्‍य देखा जाना चाहिए, यह देखा जाना चाहिए कि उसके राजनीतिक विचार और राजनीतिक सक्रियता क्‍या है, उसका अतीत और वर्तमान क्‍या है!
*तटस्‍थता कभी-कभी राजनीतिक नासमझी के चलते होती है, पर ज्‍़यादातर वह एक कुटिल चालाकी होती है  जो अंतत: ग़लत के पक्ष को ही मज़बूत बनाती है। ऐसे तटस्‍थ लोग आप पर हमले होते समय चुप रहते हैं, पर जब आप कोई प्रतिरक्षात्‍मक या प्रत्‍याक्रमणात्‍मक कदम उठाते हैं तो वे तुरत संयम-उदारता का उपदेश देने लगते हैं। सड़क के झगड़े में भी बीच-बचाव के नाम पर कुछ शातिर लोग किसी एक पक्ष के पिट जाने में मददगार की भूमिका निभाते हैं।
*यदि आपकी कोई बात तरह-तरह के निठल्‍लों, भगोड़ों और अवसरवादियों को एक साथ चुभ जाती हो, तो समझ लीजिये, आप एकदम सही बात कह रहे हैं।
*जो आपको बहुत अधिक विनम्रता और उदारता का उपदेश देते हैं, वे स्‍वयं अपनी आलोचना  के समय कितनी विनम्रता और उदारता दिखलाते हैं, यह देखना बड़ा दिलचस्‍प होता है। संतवेशी व्‍यक्ति की आलोचना यदि सही निशाने पर लग गयी तो तुरत वह कम्‍बल फेंककर काले नाग की तरह फन काढ़ लेता है या गली के कटखने कुत्‍ते की तरह भौंकने लगता है।
*मध्‍यवर्गीय बौद्धिक जमातों में मौक़ापरस्‍त, पतित तत्‍वों को सहयोगी बहुत जल्‍दी और बहुत अधिक मिल जाते हैं। जिनसे आपका प्रत्‍यक्षत: कोई सम्‍बन्‍ध-सम्‍पर्क या दुश्‍मनी न भी हो, वे आपके विरुद्ध मुखर हो जाते हैं, क्‍योंकि अपनी सहज वर्ग-प्रवृत्ति से आपका सिद्धान्‍त और व्‍यवहार उन्‍हें अप्रिय लगता है, उनको चुभता रहता है। आपको असफल होते देखकर उन्‍हें अपार खुशी होती है। आपके विरुद्ध वे जो कुछ भी सुनते हैं, उसे सही मानने के लिए स्‍वयं को 'कनविंस' कर लेते हैं, फिर उतावलेपन के साथ कुत्‍सा-प्रचारको के सहयोगी बन जाते हैं। 

2 comments:

  1. ये राग (सोच) सच मे निंद उडाने वाले है.इतना सटिक आप कैसे लिखती है इसका ही अश्चार्य लगता है.धन्यवाद.

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  2. ये राग (सोच) सच मे निंद उडाने वाले है.इतना सटिक आप कैसे लिखती है इसका ही अश्चार्य लगता है.धन्यवाद.

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