Tuesday, March 18, 2014

माओवाद पर सूत्रवत्, निष्‍कर्ष के तौर पर...



1.अपने समय के महानतम क्रान्तिकारी और सर्वहारा दार्शनिक माओ त्से-तु़ंग के युगान्तरकारी, अनश्वर अवदानों को हम दो चरणों में बाँट कर देख सकते हैं। पहला, नयी जनवादी क्रान्ति की रणनीति एवं आम रणकौशल, संयुक्त मोर्चे और सामरिक रणनीति तथा संस्कृति विषयक प्रस्थापनाओं के प्रतिपादन द्वारा मार्क्‍सवाद के शस्‍त्रागार को समृद्ध करने का चरण। यह मार्क्‍सवाद-लेनिनवाद में महत्तवपूर्ण विकास का -- आंशिक गुणात्मक विकास का चरण था, जिस विकास के ऐतिहासिक महत्तव को मार्क्‍सवाद-लेनिनवाद-माओ विचारधारा कहकर अभिव्यक्त किया गया। दूसरा चरण समाजवादी संक्रमण की समस्याओं से जूझते हुए महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति के मुकाम तक पहुँचने का दौर था जिसकी शिक्षाओं ने दर्शन, राजनीतिक अर्थशास्त्रा और पार्टी एवं राज्य विषयक तथा समस्त अधिरचनात्मक तन्त्र विषयक सिद्धन्त -- मार्क्‍सवादी विज्ञान की इन सभी शाखाओं-प्रशाखाओं को सर्वतोमुखी, गुणात्मक और बुनियादी तौर पर समृद्ध करके विकास की एक सर्वथा नयी मंज़िल तक पहुँचा दिया। इस नये क्रान्तिकारी विकास को मार्क्‍सवाद-लेनिनवाद-माओवादसंज्ञा के द्वारा ही सही-सटीक ढंग से, वास्तविक ज़ोर के साथ प्रकट किया जा सकता है। महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति की युगान्तरकारी महत्ता केवल तभी रेखांकित हो पायेगी।
2.महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति के बाद, और इसके बाद विश्वस्तर पर घटने वाली घटनाओं द्वारा इसकी शिक्षाओं-आकलनों के निरापद सत्यापन के बाद, माओ के अवदानों का समुचित महत्तव-प्रतिपादन -- माओ विचारधारा शब्दावली के इस्तेमाल द्वारा नहीं हो पाता। यह सर्वहारा वर्ग के सर्वतोमुखी अधिनायकत्व के अन्तर्गत क्रान्ति जारी रखने के सिद्धान्त के ऐतिहासिक महत्तव को तनु (डाइल्यूट) करता है तथा इस काम को अंजाम देने लायक उत्तराधिकारियों की पीढ़ी तैयार करने -- ऐसी पार्टी बनाने की लम्बी, कठिन तैयारी और संकल्प को ढीला एवं कमज़ोर बनाता है। माओ विचारधारा नाम तभी उपयोग में आ रहा था, जब सांस्कृतिक क्रान्ति का सूत्रपात नहीं हुआ था और चीनी क्रान्ति नवजनवाद की थीसिस को सत्यापित करके समाजवादी संक्रमण की गुत्थियों को सुलझाने की चुनौतियों से जूझ रही थी। महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति के बाद, समाजवादी संक्रमण काल की अति दीर्घ ऐतिहासिक अवधि में सर्वहारा क्रान्ति की आम दिशा के निरूपण के बाद, समाजवाद विषयक माओ के चिन्तन के शीर्ष बिन्दु पर पहुँचने के बाद सर्वहारा क्रान्ति के विज्ञान का यह नामकरण मार्क्‍सवाद-लेनिनवाद-माओ विचारधारा अपर्याप्त है।
3.यह एक जड़सूत्रावादी और अतीत के प्रति अन्धानुकरणवादी रवैया है कि चूँकि माओ के जीवन काल में और महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति (1966-76) के दौरान इसके महत्तव को रेखांकित करने के बावजूद 'माओ विचारधारा' शब्दावली का ही इस्तेमाल किया जा रहा था, इसलिए आज भी हमें ऐसा ही करना चाहिए। किसी भी विज्ञान के क्रान्तिकारी विकास के ऐतिहासिक महत्तव को समझते हुए भी उसके सभी पक्षों के सम्यक समाहार और निष्कर्ष स्वरूप सत्व के आसवन का काम तुरन्त नहीं पूरा हो जाता। मार्क्‍स-एंगेल्स द्वारा वैज्ञानिक समाजवाद के विकास की पहली मंज़िल में ही पेरिस कम्यून ने इसे सत्यापित किया और उसके समाहार ने इसे सर्वहारा क्रान्ति का सम्पूर्ण विज्ञान बनाया। पेरिस कम्यून और मार्क्‍स की मृत्यु के बाद एंगेल्स ने मार्क्‍स के सम्पूर्ण अवदानों का निष्कर्षपरक मूल्यांकन करते हुए इसे मार्क्‍सवाद का नाम दिया। लेनिन द्वारा मार्क्‍सवादी विज्ञान में किये गये सर्वतोमुखी, गुणात्मक विकास के महान अक्टूबर क्रान्ति द्वारा सत्यापन और उत्तरवर्ती विकास के बाद भी लम्बे समय तक लेनिन कि अवदानों के मूल्यांकन का काम चलता रहा और फिरस्तालिन ने इसके द्वारा मार्क्‍सवादी विज्ञान में हुए गुणात्मक विकास को लक्ष्य करके इसे लेनिनवाद की संज्ञा से अभिहित किया। महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति का पहला प्रयोग अभी जारी ही था और इसकी शिक्षाओं के समाहार का काम अभी जारी ही था कि चीन में पूँजीवादी विपर्यय हो गया। फिर भी जिस हद तक माओ के जीवनकाल में इसकी शिक्षाओं का समाहार हो सका था और चीन में पूँजीवादी पुनर्स्थापना, उसके बाद देंगपन्थियों द्वारा लागू की गयी नीतियों तथा उनके परिणामों और तमाम अन्तरराष्ट्रीय अनुभवों का जिस हद तक भी कम्युनिस्ट क्रान्तिकारियों ने विश्लेषण-समाहार किया है, उस आधार पर इतना दावे के साथ कहा जा सकता है कि महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति पेरिस कम्यून और अक्टूबर क्रान्ति के बाद तीसरी महान सर्वहारा क्रान्ति है जिसने सर्वहारा विचारधारा को एक नयी मंज़िल तक विकसित कर दिया है। यह ज्ञात इतिहास की सर्वाधिाक रैडिकल, सर्वतोमुखी राजनीतिक क्रान्ति है। अब यह काम दुनिया भर के क्रान्तिकारी कम्युनिस्टों का है कि वे सांस्कृतिक क्रान्ति तक की माओ की शिक्षाओं को सही, व्यापक और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में अवस्थित करें और उनका सम्यक समाहार करें। महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति द्वारा सत्यापित माओ की शिक्षाओं को जो नहीं समझतावह मार्क्‍सवादी विज्ञान को नहीं समझता। जो इनकी हिफाज़त नहीं करता, वह मार्क्‍सवाद की हिफाज़त नहीं करता। यह अब तक के सभी वर्ग-संघर्षों और सर्वहारा क्रान्तियों का निचोड़ है। इसका नाभिक पेरिस कम्यून, अक्टूबर क्रान्ति और सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति के सत्व से संघटित हुआ है। अत: यह सर्वथा सही है कि हम आज के क्रान्ति के विज्ञान को मार्क्‍सवाद-लेनिनवाद-माओवाद कहें। यही साम्राज्यवाद के इस दौर में और समाजवादी संक्रमण के पूरे दौर में सर्वहारा वर्ग की पार्टी का मार्गदर्शक सिद्धान्त होगा।
4.आज जब कि सर्वहारा वर्ग का नेतृत्व करने के लिए न तो मार्क्‍स-एंगेल्स, लेनिन, स्तालिन और माओ जैसा कोई शिक्षक और नेता है, न ही मार्क्‍स, लेनिन और माओ जैसा कोई प्राधिकार और न ही कोई अन्तरराष्ट्रीय संगठन या कोई समाजवादी देश; तो इन अभूतपूर्व कठिन परिस्थितियों में पुन: कठिन विचारधारात्मक संघर्ष और वर्ग-संघर्ष की शुरुआत के ज़रिये सर्वहारा क्रान्ति के नये संस्करण के निर्माण की बुनियाद तैयार करते हुए क्रान्तिकारी कम्युनिस्ट शक्तियों को विचारधारा के प्राधिाकार को अडिग रूप में स्थापित करना होगा और संशोधानवाद के साथ रत्तीभर भी समझौता करने के बजाय एकदम धारा के विरुद्ध खड़े होकर स्पष्टतम विभाजक रेखा खींचनी होगी। देंगपन्थियों का संशोधानवाद आज संशोधानवाद की सर्वाधिक घातक और नवीनतम प्रवृत्ति है जिसका नमूना चीन में अभी भी खड़ा है और दुनिया भर के संशोधनवादियों और पूँजीवादी पथगामियों को ढाढ़स बँधा रहा है। देंग का गिरोह आज भी ''माओ त्से-तुंग विचारधारा'' का नाम ले रहा है। वह माओ के महानतम अवदान सांस्कृतिक क्रान्ति को ''महाविपदा'' और माओ की ''ऐतिहासिक ग़लती'' बता रहा है और जनवादी क्रान्ति तक के उनके अवदान के ''गुण गा रहा है।'' आज विचारधारात्मक संघर्ष की अन्तिम युद्ध रेखा देंगपन्थ और माओ की सांस्कृतिक क्रान्ति तक की शिक्षाओं के मध्‍य खिंची हुई है। इस युद्ध में अपनी पोज़ीशन को सही ढंग से प्रकट करने और सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति की शिक्षाओं को माओ के महानतम अवदान के रूप में रेखांकित करने के लिए आज क्रान्ति के विज्ञान को माओवाद कहना ही सही है। क्योंकि, आज सिर्फ वही एक मार्क्‍सवादी है जो सर्वहारा अधिनायकत्‍व की स्‍वीकृति को सर्वहारा वर्ग की सर्वतोमुखी अधिनायकत्व के अन्तर्गत सतत् क्रान्ति की अपरिहार्यता तक विस्तारित करता है।  
5.मार्क्‍सवाद-लेनिनवाद-माओवाद ही वह उच्चतर धरातल है, जहाँ से सर्वहारा वर्ग के अब तक के सभी महान शिक्षकों की शिक्षाओं को, यहाँ तक कि माओ की भी तमाम पूर्ववर्ती शिक्षाओं को और अधिक गहराई तथा सर्वथा नये अहसास के साथ आत्मसात किया जा सकता है। आज की वस्तुगत परिस्थितियाँ यह इजाज़त नहीं देतीं कि इससे किसी निम्न धरातल पर खड़े होकर अतीत की शिक्षाओं का समाहार किया जाए। वह ''पुराना मार्क्‍सवाद'' होगा, जिसके सहारे हम हृासमान वर्तमान से अपना जीवन्त भविष्य नहीं छीन सकते, सामाजिक सम्बन्धों और वैज्ञानिक सिद्धान्तों के रहस्यीकरण के चक्रव्यूह से मुक्त नहीं हो सकते और आज के दौर के सर्वथा नये कार्यभारों को पूरा नहीं कर सकते।
6.विश्व स्तर पर सर्वहारा वर्ग और बुर्जुआ वर्ग के बीच विगत शताब्दी के मध्‍य से जारी महासमर का पहला विश्व-ऐतिहासिक चक्र पेरिस कम्यून, अक्टूबर क्रान्ति और महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति के प्रकाशस्तम्भ स्थापित करने के बाद, चीन में पूँजीवाद की पुनर्स्थापना के बाद अब समाप्त हो चुका है और यह वर्ग-महासमर अब दूसरे विश्व-ऐतिहासिक चक्र में प्रविष्ट हो चुका है। सर्वहारा क्रान्तियाँ सामयिक तौर पर पराजित हुई हैं पर सर्वहारा वर्ग आज वहाँ नहीं खड़ा है जहाँ वह अक्टूबर क्रान्ति के पहले खड़ा था। मार्क्‍सवाद-लेनिनवाद-माओवाद तीन महान क्रान्तियों के प्रकाश स्तम्भों की सम्मिलित रोशनी है, मार्क्‍स-लेनिन-माओ की शिक्षाओं से अर्जित इतिहास का दिशाबोधा है। अब इसी के मार्गदर्शन में नयी सर्वहारा क्रान्तियों का नया इतिहास आने वाली सदी में लिखा जायेगा।
अभूतपूर्व कठिन संकट और असाध्‍य चुनौतियों में फँसे साम्राज्यवाद के विरुद्ध दुनिया भर के मेहनतकशों के विद्रोहों और संघर्षों को दृष्टि और दिशा से लैस करके यह नयी क्रान्तियों की रचना करेगा। माओवाद जनता के हाथों में पहुँचकर पुन: एक प्रचण्ड शक्तिशाली भौतिक शक्ति बन जायेगा। यह दुनिया को बदलने के प्रयोग में पुन: अपने को आगे विकसित करेगा। क्योंकि गति विज्ञान का प्राणतत्व होता है। और यह एक विज्ञान है। क्रान्ति का विज्ञान, सर्वहारा क्रान्ति का विज्ञान।

-- शशि प्रकाश ('क्‍यों माओवाद' पुस्तिका का उपसंहार)

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