Tuesday, December 03, 2013

हमको फासीवाद माँगता!



-कविता कृष्‍णपल्‍लवी

देशी-विदेशी पूँजीपति, बड़े व्‍यापारी, सट्टाबाज़ार के खिलाड़ी, उच्‍च मध्‍यवर्ग के ज्‍़यादातर लोग, कारपोरेट कल्‍चर में  लिथड़े यप्‍पी-शप्‍पी -- सभी व्‍यग्र हैं। वे चीख रहे हैं -- 'हमको फासीवाद माँगता।' असाध्‍य ढाँचागत संकटों से ग्रस्‍त-त्रस्‍त, हाल के वर्षों में दुनिया के विभिन्‍न हिस्‍सों में उठ खड़े होने वाले जनविद्रोहों से अचम्भित-आतंकित पूँजी चीख रही है -- 'भारत जैसे विश्‍व बाज़ार के महत्‍वपूर्ण हिस्‍से में हमको कोई गड़बड़ी नहीं माँगता! हमको फासीवाद माँगता!'

वैसे कारपोरेट घरानों ने पुरानी वफादार पार्टी कांग्रेस का विकल्‍प भी सुरक्षित रखा है। मतदान की रेस में दाँव दोनों घोड़ों पर लगा है, पर ज्‍़यादा पैसा भाजपा पर लगा है जिसने नव फासीवाद के सी.ई.ओ. नरेन्‍द्र मोदी का चेहरा आगे किया है, जिसका चाल-चेहरा ही नहीं चरित्र भी हिटलर जैसा है, नीतियाँ-रणनीतियाँ ही नहीं बोली-भाषा भी हिटलर जैसी है।

पिछले दिनों हुए एक सर्वेक्षण में, देश के सौ कारपोरेट लीडरों में से 74 ने मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना पसंद किया। 'सी.एल.एस.ए.' और 'गोल्‍डमैन सॉक्‍स' के बाद अब जापानी ब्रोकरेज कं. 'नोमुरा' को भी भारत में 'मोदी लहर' चलती दीख रही है। 'टाइम' पत्रिका द्वारा वर्ष के सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण व्‍यक्ति के चयन के लिए जारी प्रतिस्‍पर्धा में मोदी दूसरे नम्‍बर पर चल रहा है। ध्‍यान रहे कि इसी पत्रिका ने दो बार हिटलर को 'वर्ष का सबसे महत्‍वपूर्ण व्‍यक्ति' घोषित किया था। अभी एक स्टिंग ऑपरेशन से खुलासा हुआ कि आई.टी. कम्‍पनियाँ किस तरह भाजपा से सुपारी लेकर मोदी के पक्ष में सोशल मीडिया का इस्‍तेमाल कर रही हैं। प्रिण्‍ट मीडिया में भाजपा समर्थित 'पेड न्‍यूज' की भरमार है। चैनल ज्‍़यादातर तरह-तरह के प्रायोजित सर्वेक्षणों से मोदी लहर को हवा देने में लगे हुए हैं।

यानी पूँजीपतियों-बैंकरों-व्‍यापारियों-कुलकों और तमाम उच्‍चमध्‍यवर्गीय परजीवी खटमलों-जूँओं-मच्‍छरों को 'गुजरात मॉडल' चाहिए। वे मचल रहे हैं: 'मोदी आओ, पूरे देश को गुजरात बनाओ।' 'कुछ दंगे हों, कुछ राज्‍य-प्रायोजित नरसंहार हों, कोई बात नहीं, फिर डंडे को ज़ोर से निवेश-अनुकूल माहौल बनाओ, 'डीरेग्‍यूलेशन' करो, 'टैक्‍स-ब्रेक' दो, हर काम में 'पी.पी.पी.' कर दो, श्रम क़ानूनों को पूरी तरह ताक़ पर धर दो, मज़दूरों की हर आवाज़ को कुचल दो, और हमारे सारे कष्‍ट हर लो' -- पूँजीपतियों की यही माँग है। वैसे नवउदारवादी नीतियों के प्रति कांग्रेस भी कम वफ़ादार नहीं है। पर पूँजीपति वर्ग बहुत जल्‍दी में है, उदि्वग्‍न है, व्‍यग्र है, चिन्तित है, भयातुर है। इसलिए वह मोदी को अवसर देने के पक्ष में ज्‍़यादा हे। वैसे मोदी आयें या राहुल, एक बात तय है, सरकार तो पूँजीपतियों की ही बनेगी।

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