Sunday, January 13, 2013

लगातार दबाव के बाद पुलिस ने फोन करके धमकाने वाले को पकड़ा

कविता

जनसंगठनों और मीडिया के लगातार दबाव के बाद पुलिस ने बारह दिन तक स्‍त्री मुक्ति लीग के फोन नंबर पर फोन करके मुझे अश्‍लील फ़ब्तियां करने वाले और अन्‍य महिला साथियों को धमकी देने वाले को आज पकड़ लिया है। लेकिन देखना यह है कि पुलिस उसके खिलाफ अदालत में दायर आरोपपत्र में क्‍या धाराएं लगाकर यह सुनिश्चित करती है कि उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो। जो भी हो, इस पूरे घटनाक्रम के दौरान मेरा यह विश्‍वास पुख्‍ता ही हुआ है कि स्त्रियों के प्रति किए जाने वाले छोटे से छोटे अपराध का पुरजोर और साझा-सामूहिक ढंग से विरोध करना ही होगा।


यदि इस मसले को भी स्त्रियों द्वारा झेले जाने वाली अन्‍य कठिनाइयों के समान अनदेखा कर दिया जाता तो निश्चित तौर पर पुलिस इस मामले में या तो कुछ करती नहीं या जांच करने की औपचारिकता करके मामले को टालती रहती। यदि मैं थक हारकर चुप बैठ जाती, तो वह मनोरोगी बेखौफ अपनी हरकतों को जारी रखता। क्‍योंकि पुलिस से ही पता चला कि स्‍त्री मुक्ति लीग के नंबर पर मुझे फोन करके धमकाने वाला व्‍यक्ति अन्‍य कई लड़कियों-महिलाओं भी परेशान कर रहा था।



हालांकि, इस बेहद सामान्‍य घटना के विरोध से स्त्रियों के प्रति किए जाने वाले अपराधों में तत्‍काल कोई बड़ा बदलाव नहीं होने वाला है, लेकिन बड़े बदलावों की शुरुआत छोटे कदमों से ही होती है। इसलिए, हमें यह लड़ाई जारी रखनी होगी, और जहां भी इस तरह की घटनाएं हों, वहां विरोध करने के लिए मानसिक तौर पर हमेशा तैयार रहना होगा।


मेरे लिए यह इस पितृसत्‍तात्‍मक व्‍यवस्‍था के खिलाफ संघर्षों का ही एक हिस्‍सा है। मुझे और मेरी अन्‍य महिला साथियों को धमकाने वाला यह व्‍यक्ति पकड़ा जाएगा, तोऐसे अपराध होना बंद नहीं हो जाएंगे, यह मैं अच्‍छी तरह जानती हूं। लेकिन हमें लड़ना तो होगा, और तब तक लड़ना होगा जब तक सही मायने में स्त्रियों को बराबरी और सम्‍मान के साथ जीने का अधिकार नहीं मिल जाता।


दरअसल, देश भर में बढ़ते विरोध के स्‍वरों के बावजूद न तो स्त्रियों के विरुद्ध होने वाले अपराधों का सिलसिला रुका और न ही पुलिस-प्रशासन के रवैये में कोई बदलाव आया, जो एक बार फिर यही बताता है कि यह सामाजिक ढांचा कितना सड़-गल गया है। इन बर्बर घटनाओं का विरोध करने, विरोध के स्‍वर को व्‍यापक बनाने, पूंजीवादी और पितृसत्‍तात्‍मक समाज की असलियत को समझकर सामाजिक बदलाव की लड़ाई को ज्‍यादा धारदार बनाने की मुहिम में स्‍त्री मुक्ति लीग के कार्यकर्ताओं ने भी जगह-जगह अभियान चलाकर पर्चा वितरित किया।

स्‍त्री मुक्ति लीग के पर्चे में दिए गए मेरे फोन नंबर पर, स्त्रियों को भोग की वस्‍तु समझने वाले बीमार मानसिकता के व्‍यक्ति का फोन आने, अश्‍लील फब्तियां कसने और धमकियां देने का सिलसिला जो शुरु हुआ, वह 11 तारीख तक जारी रहा। डांटने-फटकारने पर भी जब उसकी हरकतें थमने के बजाय बढ़ती गईं, तो हेल्‍पलाइन से लेकर दिल्‍ली पुलिस के पी.आर.ओ तक को फोन करने के बाद पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई थी (इस संबंध में मैंने पहले भी अपने ब्‍लॉग पर लिखा था)। आठ दिन तक तो पुलिस सुस्‍त तरीके से जांच कर रही थी और एफआईआर भी दर्ज नहीं की थी, बाद में क्षेत्र के जनसंगठनों और पत्रकारों द्वारा डी.सी.पी. और राष्‍ट्रीय महिला आयोग को ज्ञापन देने के बाद प्राथमिकी दर्ज हुई और पुलिस हरकत में आई थी। इसके बावजूद फोन आना बंद नहीं हुआ था। खैर, इतने दबाव के बाद फोन करने वाला पकड़ा गया है, यह राहत की बात है।



कविता

स्‍त्री मुक्ति लीग

1 comment:

  1. व्यकित अगर अपने क्रियाकलापों से समाज में दूसरों को कष्ट देने लगे तो जितना जल्दी है उस पर काबू पाया जाना चाहिए। हर शुरुआत एक छोटे से कदम से होती है। पुलिस ने आखिर कार्रवाई की है और वो इससे सख्ती से निपटेंगे ये आशा भी है।

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