Friday, June 08, 2012

लोर्का की दो कविताएं

नये गीत

तीसरा पहर कहता है: मैं छाया के लिये प्‍यासा हूं
चांद कहता है: मुझे तारों की प्‍यास है।

बि‍ल्‍लौर की तरह साफ झरना होंठ मांगता है
और हवा चाहती है आहें।

मैं प्‍यासा हूं खुशबू और हंसी का
Courtesy: fineartamerica.com
मैं प्‍यासा हूं चन्‍द्रमाओं, कुमुदिनियों
और झुर्रीदार मुहब्‍बतों से मुक्‍त
गीतों का।

कल का एक ऐसा गीत
जो भविष्‍य के शान्‍त जलों में हलचल मचा दे
और उसकी लहरों और कीचड़ को
आशा से भर दे।

एक दमकता, इस्‍पात-जैसा ढला गीत
विचार से समृद्ध
पछतावे और पीड़ा से अम्‍लान
उड़ान भरे सपनों से बेदाग।
एक गीत जो चीजो की आत्‍मा तक
पहुचता हो, हवाओं की आत्‍मा तक
एक गीत जो अन्‍त में अनन्‍त हृदय के
आनन्‍द में विश्राम करता हो।


नारंगी के सूखे पेड़ का गीत

लकड़हारे,
मेरी छाया काट।
मुझे खुद को फलहीन देखने की यन्‍त्रणा से
मुक्‍त कर।

मैं दर्पणों से घिरा हुआ क्‍यों पैदा हुआ ?
दिन मेरी परिक्रमा करता है,
और रात अपने हर सितारे में
मेरा अक्‍स फिर बनाती है।
मैं खुद को देखे बगैर
जिन्‍दा रहना चाहता हूं
और मैं सपना देखुंगा कि
चीटियां और गिद्ध मेरी पत्तियां और चिडिया हैं।

लकड़हारे
मेरी छाया काट।
मुझे खुद को फलहीन देखने की यन्‍त्रणा से
मुक्‍त कर।

3 comments:

  1. वाह...
    अद्भुत...


    अनु

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  2. हर चीज़ पर वाह-वाह, अद्भुत, बहुत खूब नहीं किया जाता जनाब/साहिबा...
    यहां आपको यंत्रणा नहीं दिख रही है...फलहीन होने की यंत्रणा... मर्सिया पढ़ते समाज में इंसान होने की यंत्रणा।

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  3. लोर्का विश्व के अदभुत कवि है।दूसरी कविता का अनुवाद कोई 25 साल पहले कुछ कविताओ के साथ किया था।तबसे उनके जादू में बंधा हूं ।

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