Monday, August 15, 2011

फिर लोहे के गीत हमें गाने होंगे

फिर लोहे के गीत हमें गाने होंगे
दुर्गम यात्राओं पर चलने के संकल्‍प जगाने होंगे।

फिर से पूंजी के दुर्गों पर हमले करने होंगे।
नया विश्‍व निर्मित करने के सपने रचने होंगे।
श्रम की गरिमा फिर से बहाल करनी होगी।
सुन्‍दरता के मानक फिर से गढ़ने होंगे।
फिर लोहे के गीत हमें गाने होंगे।

सत्‍ता के महलों से कविता बाहर लानी होगी।
मानवता के शिल्‍पी बनकर आवाज़ उठानी होगी।
मरघटी शान्ति की रुदन भरी प्रार्थना रोकनी होगी।
आशाओं के रणराग हमें रचने होंगे।
फिर लोहे के गीत हमें गाने होंगे।

-शशि प्रकाश

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