Thursday, June 16, 2011

शायरी मैंने ईजाद की


काग़ज़ मराकशियों ने ईजाद किया
हरुफ़ फ़ीनीशियों ने
शायरी मैंने ईजाद की

कब्र खोदने वाले ने तंदूर ईजाद किया
तंदूर पर कब्ज़ा करने वालों ने रोटी की पर्ची बनाई
रोटी लेने वालों ने कतार ईजाद की
और मिलकर गाना सीखा

रोटी की कतार में जब चीटियाँ भी आ खड़ी हो गईं
तो फ़ाका ईजाद हुआ

शहतूत बेचने वालों ने रेशम का कीड़ा ईजाद किया
शायरी ने रेशम से लड़कियों के लिबास बनाये
रेशम में मलबूस लड़कियों के लिए कुटनियों ने महलसरा ईजाद की
जहां जाकर उन्होंने रेशम के कीड़े का पता बता दिया

फ़ासले ने घोड़े के चार पाँव ईजाद किये
तेज रफ़्तारी ने रथ बनाया
और जब शिकस्त ईजाद हुई
तो मुझे तेज रफ़्तार रथ के आगे लिटा दिया गया

मगर उस वक्त तक शायरी ईजाद हो चुकी थी
मुहब्बत ने दिल ईजाद किया
दिल ने खेमा और कश्तियाँ बनाई
और दूर-दराज मकामात तय किये

ख़्वाजासरा ने मछली पकड़ने का काँटा ईजाद किया
और सोये हुए दिल में चुभोकर भाग गया
दिल में चुभे हुए काँटे की डोर थामने के लिए
नीलामी ईजाद की
और ज़बर ने आखिरी बोली ईजाद की
मैने सारी शायरी बेचकर आग ख़रीदी
और ज़बर का हाथ जला दिया
-- पाकिस्तानी शायर अफ़जाल अहमद

मरकिशी- मोरक्को के मिरकिश शहर निवासी
फ़ीनिशी- फ़ीनिश के निवासी
महलसरा- अंतःपुर, हरम
खेमा - तम्बू
ख़्वाजासरा- हरम का रखवाला हिजड़ा
ज़बर- अत्याचार

2 comments:

  1. अफजाल अहमद की ये बेहद ताकतवर कविता पेश करने के लिए बहोत शुक्रिया कविता.
    मैंने कई साल पहले किसी पत्रिका में इसे पढ़ा था और तभी से अफजाल अहमद की मुरीद हूं.
    आपकी कविताएं बहुत कम पढ़ी हैं लेकिन अच्‍छी लगती हैं। आपका कोई संकलन भी आया है क्‍या।

    ReplyDelete
  2. अद्भुत कविता

    ReplyDelete