Thursday, April 07, 2011

शायद वे समझ रहे थे



शायद वे समझ रहे थे
मुझे यंत्र मानव।
मैं समझ रही थी
उनकी कविताएं
और उनकी चालाकियां भी।
अच्‍छा है,
बनी रहे उनकी यह ग़लतफ़हमी
वरना वे शब्‍दों के इस खेल में
मुझे भी शामिल कर लेंगे
और मैं
किसी लायक नहीं रह जाऊंगी।
                                    -कविता कृष्‍णपल्‍लवी

1 comment:

  1. वरना वे शब्‍दों के इस खेल में
    मुझे भी शामिल कर लेंगे ...

    किसी अनकही बात को
    काव्य के सुन्दर माध्यम से
    एक मांगी-चाहि-सी बात बना पाना ,,
    मुश्किल तो है ही...

    शिल्प और शैली ,
    शब्दों को काव्य की श्रेष्ठता की ओर
    ले जा रहे हैं ...
    अभिवादन .

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