Thursday, April 07, 2011

लेखन के ज़रिये लड़ो! दिखाओ कि तुम लड़ रहे हो! ऊर्जस्‍वी यथार्थवाद! यथार्थ तुम्‍हारे पक्ष में है, तुम भी यथार्थ के पक्ष में खड़े हो!  जीवन को बोलने दो! इसकी अवहेलना मत करो! यह जानो कि बुर्जुआ वर्ग इसे बोलने नहीं देता! लेकिन तुम्‍हे इजाज़त है। तुम्‍हे इसे बोलने देना चाहिये।  चुनो उन जगहों को जहां यथार्थ को झूठ से, ताकत से,चमक-दमक से छुपाया जा रहा है। अन्‍तरविरोधों को उभारो!... अपने वर्ग के लक्ष्‍य को, जो सारी मानवता का लक्ष्‍य है, आगे बढ़ाने के लिये सबकुछ करो, लेकिन किसी भी चीज़ को सिर्फ इसलिये मत छोड़ दो, क्‍योंकि वह तुम्‍हारे निष्‍कर्षों, प्रस्‍तावों और आशाओं के साथ मेल नहीं खाती बल्कि ऐसे निष्‍कर्ष को छोड़ ही दो, बशर्ते सच्‍चाई आड़े न आये, लेकिन ऐसा करते हुए भी इस बात पर ज़ोर दो, कि उस भयंकर लग रही कठिनाई पर जीत हासिल कर ली गयी है। तुम अकेले नहीं लड़ रहे हो, तुम्‍हारा पाठक भी लड़ेगा, यदि तुम उसमें लड़ाई के लिए उत्‍साह भरोगे। तुम अकेले ही समाधान नहीं ढूढोगे, वह भी उसे ढूढेगा।
                                                                                              -बेर्टोल्‍ट ब्रेष्‍ट

                                                        
                                                             

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