ख़रीद कर लायी एक शब्दकोश
फ़िर परिचय हुआ, बहुत सारे
नये-नये शब्दों से।
फ़िर भी, फ़िर भी बन नहीं सकी दोस्ती
उन शब्दों से।
नहीं थी उन शब्दों के पीछे
प्यार की कोई गरमी,
परिचय की कोई कौंध।
अपनापे की कोई गंध।
वहां लुगदी से बने ताज़ा का़गज़
और छापाख़ाने की रोशनाई की गंध थी।
फ़िर जुटा लाई मोहल्ले के
कुछ शैतान बच्चों को
निर्जीव शब्दों की उस अर्थी को
कांधे पर रखे,
पहुंचा आयी विद्युत शवदाह गृह
और रह गयी मूर्ख की मूर्ख।
-कविता कृष्णपल्लवी
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