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Tuesday, March 15, 2011
निन्दक
निन्दक को नज़दीक बसाया
उपकृत हुए।
फिर कभी नहीं की निन्दा।
फिर ख़ुद ही जा बसे निन्दकों
की बस्ती में।
वहां खूब किया निन्दा रस का पान
फिर चले हांक लगाते
कि है कोई हमें
अपने नज़दीक बसाने वाला?
-कविता कृष्णपल्लवी
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