सबसे कठिन और अंधकारमय दिन वे होते हैं जब लोग गुज़रे समय की किसी हार से मायूस होकर बेहतर भविष्य और विकल्प के बारे में सोचना बन्द कर देते हैं और तमाम अनाचार-अत्याचार को सिर झुकाए बर्दाश्त करते तथा रियायतों के लिये मिन्नतें करने - गिड़गिड़ाने के आदी हो जाते हैं।
आज का समय ऐसा ही समय है। अंधी लूट, बेशर्म भ्रष्टाचार, बर्बर दमन, भयावह सामाजिक-सांस्कृतिक पतन - लोग सबकुछ देख सह रहे हैं, पर उठ खड़े नहीं हो रहे हैं, विद्रोह के लिए प्रेरित नहीं हो रहे हैं। नये समाज का और वहां तक पहुंचने के रास्ते का सटीक नक्शा पेश करने वाला नया क्रांतिकारी नेतृत्व अभी तैयार नहीं है। पुरानी क्रांतियों को दुहराने की कोशिश करने वाले कठमुल्लावादियों से लोगों को उम्मीद नहीं बंधती। सत्ताधर्मी बुद्धिजीवी, अख़बार, टी.वी. सभी मिलकर लोगों को लगातार बताते रहते हैं कि पूंजीवाद का कोई विकल्प है ही नहीं, अत: इस चमक-दमक भरी बर्बरता को स्वीकार करो, असहनीय हो जाये तो धार्मिक बाबाओं, टी.वी. सीरियलों और नशा-पानी के सहारे बर्दाश्त करो।
लेकिन इन अंधकारमय दिनों को बीतना ही होगा। ये अवश्य बीत जायेंगे। लोग हमेशा हार और पस्ती की मानसिकता में नहीं पड़े रहेंगे। एक दिन अपना इतिहास खु़द बनाने के लिए वे एक बार फिर उठ खड़े होंगे।
कल 11/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!