इस धरती पर बाकी लोगों की तरह तू भी चल रहा है। तू राजा और बाकी लोग मज़दूर कैसे ? बाकी लोगों की तरह तेरी भी दो पांवों के ऊपर पिण्डलियां, घुटने, कमर, छाती और माथा है। फिर तू ही क्यों पालकी में चढ़ा हुआ इन लोगों से पालकी ढुलवा रहा है, और अपने आप को सौवीरराज कहलवा रहा ? तू अपने आप को सिन्धु का राजा समझ कर मद से अन्धा हुआ जा रहा है, और तकलीफ उठाते दीन-हीन इन जनों को क्रूरता के साथ बेगार में लगाये हुए है। फिर भी अपने आप को दीन जनों का रक्षक बताकर डींग हांकता है, जानकार लोगों के बीच तेरी यह ढिटाई शोभनीय नहीं है।
-सिंधुसौवीरपति राजा रहूगण से अवधूत जड भरत का संवाद
(श्रीमदभागवत, पंचम स्कन्ध)
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