देर रात के राग
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Thursday, February 24, 2011
समझा तो यही ...
समझा तो यही था
कि अकेले ही देख रही थी उसे
कि पाया कि कोई और भी देख
रहा है उसे,
उस स्वप्न को
और उसे देखते हुए मुझको
जैसे कि मैं उसको।
अनुभव
बहुत कुछ झेले
फिर भी वृक्ष न हुए।
करते रहे वृक्षों से प्यार।
बचे रहे होने से वृक्ष।
-कविता कृष्णपल्लवी
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