Tuesday, February 15, 2011

कुछ छोटी कविताएं

(एक)
कल हमें निपटाने हैं
बहुत ज़रूरी
कुछ छूटे हुए काम।
हर रात हम सोचते हैं।

(दो)
यह सुबह थी।
घास पर पटे पेड़
हरसिंगार के फूलों की
अंतिम सांझ।

(तीन)
बर्फबारी हो रही थी
बाज़ार में
बमबारी से भी बुरी।
घर में
मद्धम आंच पर
सिंक रही थी ज़‍िन्‍दगी
राहत पाने के लिए थी
सिर्फ़ गर्म-ताज़ा रोटियों की गंध।

(चार)
पार्क की बेंच पर
बैठे हैं दो बूढ़े
चुपचाप।
उनके बीच
साझेदारी है
गुज़रे हुए समय की।
पुराने औज़ारों से
निशानदेही कर रहे हैं वे
नई ज़ि‍न्‍दगी की।
                          -कविता कृष्‍णपल्‍लवी
   

2 comments:

  1. Bahut hi achi aur sundar kavitaye..

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  2. यह सुबह थी।
    घास पर पटे पेड़
    हरसिंगार के फूलों की
    अंतिम सांझ।

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