Sunday, February 20, 2011

जब मन चाहे



जब मन चाहे
आत्‍मा के जख्‍़मों, प्‍यास, प्रतीक्षा ,
पागल चाहतों और बेचैन यादों के बारे में
बातें करने को,
तब चाय बनाओ
दोस्‍तों के लिए,
घर की सफाई करो
किताबों को
तरतीब से सजाओ
और कुछ खाने-पीने का प्रोग्राम बनाओ।
यही दस्‍तूर है इस शहर का
पर यहां रहते हैं
कुछ समझदार भी
और कुछ समझदार होने का वहम पाले
कुछ लाल बुझक्‍कड़ भी।
                                     -कविता कृष्‍णपल्‍लवी

3 comments:

  1. शुभकामनाएँ...

    हिन्दी ब्लाग जगत में शिखर तक की यात्रा करने के सुप्रयास हेतु आर नजरिया ब्लाग में नये ब्लाग लेखकों के लिये उपयोगी सुझाव अवश्य पढें ।
    http://najariya.blogspot.com

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  2. अनूठी रचना जो सबसे अलग और हटकर लगी - बधाई

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